बाती की महिमा बड़ी,
जलकर दिया प्रकाश।
मनुज मनुज को देखकर,
जल करता सुखनाश।।
जल करता सुखनाश,
जला जैसे अंगारा।
शांति - सुधा से दूर ,
फिरा जन मारा - मारा।।
देख किसी की शांति,
पीटता क्यों रे छाती!
सीख ग्रहण कर 'शुभम',
जल रही हँस-हँस बाती।।
पानी में जब रँग मिला,
तदवत रूपाकार।
दूध मिला तो दूध -सा,
तन - मन एकाकार।।
तन - मन एकाकार ,
रंग नहिं कोई अपना।
जिसका देता संग ,
उसी की माला जपना।।
निर्मल तन -मन कीजिये,
ये सत भाषा - बानी।
शिक्षक तेरा शुभम,
कह रहा उज्ज्वल पानी ।।
रानी राजा के गए ,
पहले दिन वे बीत ।
प्रजातंत्र में स्वार्थ है,
नियम न सच्ची नीत।।
नियम न सच्ची नीत,
मतों पर सत बलिहारी।
नेता ही भगवान ,
देश के कलिमल हारी।।
जनता का धन बाँट,
बन गए अवढर दानी।
'शुभम' करों की मार,
नहीं वे राजा - रानी ।।
नारी नर मर्याद का ,
बंद हुआ अध्याय।
पर नारी के संग रहो,
नारी पर घर जाय।।
नारी पर घर जाय,
उचित कानून बताता।
पति पत्नी संग बँधा,
नहीं जन्मों का नाता।।
कुत्ता बिल्ली सम हुए,
न नर पर नारी भारी।
मनभाये वह करो,
'शुभम' कलयुग की नारी।।
तीस साल के बाद में ,
निकला 'मी टू' जिन्न।
पहले स्वेच्छा से हुआ ,
अब मन होता खिन्न।।
अब मन होता खिन्न,
चढ़ चुकी ऊँची सीढ़ी।
तन शुचि आई याद ,
जल गई आधी बीड़ी।।
'सावित्री के मन उठी,
यौवन - युग की खीस।
'शुभम' अदालत में गई,
बीत गए जब तीस।।
💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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