गुरुवार, 31 जनवरी 2019

बंदर बाँट [गीत]

मनमानी के नियम बनाए।
घोंटू पेट ओर झुक जाए।।

चित   भी मेरी पट भी मेरी,
आधी   में  भी   आधी मेरी,
चतुर  वही जो  मूर्ख बनाए,
उसका भी हिस्सा खा जाए।
बंदर बाँट   यही    कहलाए।
मनमानी के  नियम बनाए।।

प्रजातंत्र की अज़ब कहानी,
जनता का धन    नेता दानी,
जनता के   सेवक  कहलाएं,
चूसें आम   गुठलियाँ  ढायें।
कुर्सी पा   नेता   तन  जाए।
मनमानी के नियम बनाए।।

जिसकी सत्ता उस कर हत्था
विरोधियों  का   काटे   पत्ता,
साम दाम  भेदों   का   फंडा,
बस न चले तो बजता डंडा।
अपनी करनी   सही  बताए।
मनमानी  के नियम बनाए।।

झूठ  आँकड़े     मीठी  बातें,
छुरियाँ छिपा  पीठ  में घातें,
कीचड़ जाये कीचड़ छिड़कें
कड़वे सच सुन तनते भड़कें।
अंधे   नयन   कान   बहराये।
मनमानी के  नियम  बनाए।।

सेवक कहकर बनते स्वामी,
वसन  गेरुआ  अंदर  कामी ,
नागनाथ कोई -साँपनाथ है,
छोरी छुरियाँ सदा साथ हैं।
मुँह से राम -  राम ही  गाए।
मनमानी के नियम बनाए।।

आठ लाख का भी गरीब है,
आज नाप की   ये जरीब है,
अच्छे - अच्छे   नाप दिए हैं,
घी में शक्कर घोल पिए हैं ।
काजू पिस्ता ही   मनभाये।
मनमानी के नियम बनाए।।

नेता नगरी में   चित  लागा ,
शिक्षा धर्म देश  से    भागा,
पूँछ घटे जो   ये पढ़   जाएँ,
नेताओं को नियम सिखायें।
नारों   से    ही   देश चलाएं।
मनमानी के नियम बनाए।।

नेताओं के   नीचे  अफसर,
उन्हें चाहिए केवल अवसर,
कितने दूध धुले अधिकारी,
नेता अधिकारी  पर  भारी।
चिकने घड़े नीर ढल जाए।
मनमानी के नियम बनाए।।

भेड़चाल अब   टूट   रही है,
बहकावे से   छूट  - रही   है,
अच्छा बुरा भला सब जानें,
नेता की गति  को   पहचानें।
"शुभम"  हटेंगे  -काले साए।
मनमानी के नियम  बनाए।।

💐 शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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