मैं गुलाब का हँसता फूल,
बच्चो मुझे न जाना भूल।।
मैं काँटों के संग में पलता।
प्रकृति के आँचल में ढलता।।
ओस - बिंदु रहते हैं झूल।
मैं गुलाब का हँसता फूल ।।
हँसता मुस्काता मैं रहता।
बुरा नहीं मुख से मैं कहता।।
पानी बरसे या हो धूल।
मैं गुलाब का हँसता फूल।।
सद सुगंध से महका देता।
नहीं किसी से कुछ भी लेता।।
देना ही मेरे अनुकूल।
मैं गुलाब का हँसता फूल।।
कोई देवालय ले जाता ।
माँग मनौती मुझे चढ़ाता।।
मोल न करता कभी वसूल।
मैं गुलाब का हँसता फूल।।
बना गले का हार कभी मैं।
गुलदस्ते में सजा कभी मैं।।
परहित ही मेरे उर हूल।
मैं गुलाब का हँसता फूल।।
कभी सेज दुल्हिन की सजता।
और कभी शव पर भी चढ़ता।।
नहीं चुभाता तीखे शूल।
मैं गुलाब का हँसता फूल।।
सीखो मुझसे नित खुश रहना।
सदा सुगंध बाँटते रहना ।।
शुभम न कहना ऊलजलूल।।
मैं गुलाब का हँसता फूल।।
💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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