मेरा देश एक यंत्र है,
शिक्षा समाज
संस्कृति सभ्यता,
साहित्य विज्ञान
कलागत भव्यता,
धर्म अध्यात्म
दर्शनगत दिव्यता,
गंगा यमुना सरस्वती
हिमालय की उच्चता,
भाषाओं की बहुरंगी
विराट विविधता,
नृत्य संगीत की
मनमोहक मधुरता,
मानव से मानव की
हार्दिक आत्मीय समीपता,
अनगिनत तंत्रों की
भारतीय तंत्रता।
वन उपवन
झीलें घाटियाँ,
गेहूँ धान गन्ने की
उर्वरा माटियाँ,
बेला गुलाब चंपा की
महकाती वादियाँ,
कमलों कमलिनियों से
आच्छादित तालाब तलइयाँ,
सूरज के चमकते दिन
चाँद तारों भरी रात्रियाँ,
शेरों की दहाड़
पिक मयूरों की अठखेलियाँ,
रसभरे रसाल द्राक्ष
महकी पुषिप्त द्रुम बेलियाँ।
इन विविधतापूर्ण तंत्रों से
चल रहा है राष्ट्र-यंत्र,
गुंजरित है जिसमें
भारतीय संविधान
गणतंत्र का मंत्र,
गौरवशाली परंपराओं
गीता वेद महाभारत का
महामंत्र,
हमारी एकता संगठन का
अमिट मंत्र।
मंत्र के बिना
तंत्र नहीं,
तंत्र बिना
यंत्र नहीं,
हम सब इस तंत्र के
सचल जीवंत
सुसंगठित पुर्जे,
स्नेह के स्नेहन से
अहर्निश सदा
एकता के साथ चलते।
मेरा देश एक यंत्र है,
जिसके साथ सदा समृद्ध
"शुभम" सुदृढ़ तंत्र
गणतंत्र का मंत्र है,
गुणतंत्र का मंत्र है।।
💐शुभमस्तु !
🌾रचयिता "©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें