गुरुवार, 17 जनवरी 2019

भक्त -चालीसा [छन्द:दोहा] (भाग:1)

भक्तों    का    संसार   है,
भक्तों     की      भरमार।
भक्त -भीड़ नित बढ़ रही,
सजे सकल दरबार ।।1।।

कंचन   कामिनि   भोगते,
बाबाजी        दिन - रात।
भक्त   सुहागा    दे    रहे ,
ग्रीष्म शीत बरसात ।।2।।

खुली  आँख  से   देखते,
अन्ध -भक्ति    अनुराग।
परदे  में क्या -  क्या घटे, 
रँग  होली का फ़ाग।।3।।

वेष  कलंकित  हो गया,
बाबाओं      के      हेत।
करनी  बाहर   आ  गई,
वसन   गेरुआ  सेत।।4।।

बहती   गंगा   में निपुण,
भक्त    धो    रहे   हाथ।
रेशम   के    परदे   सजे,
आगे - पीछे  स्वार्थ।।5।।

रामनाम  पट पर लिखा ,
उर   में     कंचन   काम ।
माया   से    दूरी    रखो ,
नित उपदेश ललाम।।6।।

नेताजी  के  भक्त   गण,
जैसे       लम्बी      पूँछ।
जितनी  लम्बी  पूँछ हो,
उसकी   उतनी   पूछ।।7।।

हाथ  लिए   माला खड़ी,
भक्त     भक्तिनी   भीड़।
किशमिश काजू साथ में
महक  रहा है नीड़।।8।।

बैनर   झण्डे     टोपियाँ ,
फ्लैक्स सुसज्जित मंच।
नारे    भक्त   लगा    रहे,
मैल  न मन  में रंच।।9।।

नेता   कच्चा   कान का ,
पर   पटु  भक्त   सुजान।
जो भर  दे  साँची   वही,
बात कान में तान।।10।।

💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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