गुरुवार, 24 जनवरी 2019

ये मेढक बरसाती हैं [गीत]

टर्र - टर्र सुन  दादुर-दल  की
जनता        भरमाती       है।
पाँच साल  तक  रहे नींद में,
ये     मेढक    बरसाती   हैं।।

ऐसे     कैसे  चल  दोगे  तुम
झोला         हाथ        लिए।
नंगा -  झोरी      देनी  होगी
हम      संग      घात   किए।।
समझ      न        लेना   तुम
जनता  की   छोटी  छाती है।
पाँच  साल तक  रहे नींद में,
ये    मेढक     बरसाती   हैं।।

ड्रामेबाज          मुखौटेधारी
चेहरा      तो      दिखलाओ।
झूठ    बोलकर   लोहू  चूसा
लाल      लहू      लौटाओ।।
झाँसे  में   ये   भोली जनता
ठग    ही      जाती       है।।
पाँच  साल तक रहे नींद में,
ये    मेढक    बरसाती   हैं।।

पाँच वर्ष  तक याद न आई
अब       बाँटोगे      सिन्नी?
रैली   कर   थैली  में डालो
भारी  -   भारी      गिन्नी ??
अंधों   को    रेवड़ी    मिले
जनता       हरषाती     है।
पाँच साल तक रहे नींद में,
ये  मेढक    बरसाती   हैं।।

मिट्ठू मियाँ  बने हो ख़ुद ही
कीचड़      खूब      उछाली।
जनहित के  गुब्बारे भर-भर
जन   की    हवा   निकाली।।
किस मुँह से चाहो सिंहासन
शर्म      न     आती      है??
पाँच  साल तक रहे नींद में,
ये    मेढक     बरसाती  हैं।।

शिक्षा  धर्म  नीति के आँगन
नित       झरबेरी       फूली।
चूनर - चोली  फंस काँटों में
सकल   अस्मिता    भूली।।
साँड़ जंगली बन फिरते हो
रसना        ललचाती    है।
पाँच  साल तक रहे नींद में,
ये     मेढक   बरसाती   हैं।।

टी वी    पत्रकार  न्यायालय
बन    गए    क्रीत    गुलाम।
यही आंतरिक नीति तुम्हारी
सुबह   को   कह दें  शाम।।
संविधान  की  धारा बदली
ठकुरसुहाती                है।
पाँच साल तक रहे नींद में,
ये   मेढक    बरसाती   हैं।।

इतनी  बेसुध  हुई न  जनता
तेरा      आसव        पीकर।
दिखला देगी जनमत अपना
फटे   दिलों    को   सीकर।।
एक -एक   पौवे की ख़ातिर
जो      बिक     जाती    है।।
पाँच  साल  तक रहे नींद में,
ये     मेढक   बरसाती   हैं।।

💐 शुभमस्तु !
🌾 रचयिता ©
 डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम"

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