शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

आदमी की भूतप्रियता [ व्यंग्य ]

   आदमी एक भूतप्रिय प्राणी है। वह  जितना आगे  है, उतना ही पीछे भी है। वह साँस तो वर्तमान में लेता है, किन्तु जीना चाहता है अतीत में, भूतकाल में। यही कारण है कि वह अपने होने की  स्थाई छाप छोड़ने के लिए कुछ ऐसी गतिविधयां या कहिए हरकतें अथवा कारनामों को अंजाम देने में लगा रहता  है, जिससे उसकी अमिट छाप के चिन्ह वक़्त के वक्ष पर पड़ सकें। आप सभी इस बात से सुपरिचित हैं कि पहले के राजा - महाराजा, बादशाह अपनी स्मृतियों को भावी पीढ़ियों के लिए सँजोने की ख़ातिर किले, बाबड़ियाँ, महल, मीनारें, स्तूप, पिरामिड और न जाने क्या क्या बनवाया करते थे। देश और विदेशों में ऐसी यादगारों के अनेक उदाहरण विश्व -इतिहास की धरोहर के रूप में आज भी देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए जयपुर में  आमेर, जयगढ़ के किले, दिल्ली में  कुतुबमीनार, लाल किला, पुराना किला, संसद भवन, आगरा स्थित ताजमहल, अकबर का किला, सिकंदरा, चीनी का रोज़ा, आराम बाग (वर्तमान रामबाग), मेहताब बाग, फतेहपुर सीकरी, ग्वालियर में राजा मानसिंह का किला, सारे देश में बने हुए प्राचीन मंदिर, अजमेर में पुष्कर और शेख सलीम चिश्ती की दरगाह, रामनगर (आँवला, बरेली के निकट ) में राजा द्रुपद का किला, संगम पर इलाहाबाद स्थित  किला, लखनऊ स्थित अनेक नवाबी शान के प्रतीक स्थल, गया, सारनाथ में बौद्ध कालीन प्रतिमाएँ और अनेक स्मृतियाँ, मिस्र के पिरामिड, स्तूप आदि सभी आदमी के अपने को अतीत में दीर्घकाल तक स्मरण में बनाये गए ऐसे ही स्मारक हैं।
   प्राचीन मानव की तरह आज का आदमी भी किसी अर्थ में कम नहीं है। अब वह राजा, सम्राट या बादशाह तो नहीं है, इसलिए वह अपनी प्रेयसी की स्मृति में ताजमहल तो नहीं बना सकता। न सम्राट अशोक की तरह सदुपदेश अंकित स्तम्भ या लाट भी खड़ी कर सकता है। जैसे आदमी अपने आत्मज /आत्मजा (अपनी आत्मा से जन्मने वाला /वाली अर्थात पुत्र/पुत्री ) की तरह ही कुछ ऐसा छोड़ना चाहता है, जिसे आगे आने वाली पीढ़ियाँ जान समझ सकें कि हमारे पूर्वज इस प्रकार के थे।
   अब आदमी कोई चिड़िया या पशु या आदमी जलचर व्हेल, मछली, मेढक या मगरमच्छ, घड़ियाल तो है नहीं , जो केवल आज में ही जीता हो। जलचर, नभचर या मानव से इतर थलचर हाथी, घोड़ा, गधा, खच्चर, गाय, भैंस तो है नहीं, जो केवल वर्तमान को ही अपना सब कुछ जनता मानता हो। इन सभी को केवल आज ही नहीं, मात्र अभी और वर्तमान क्षण की ही चिंता रहती है। ये सभी कल में (भूतकालीन) नहीं जीते और न हीं आने वाले कल की ही चिंता में अपना खून सुखाते हैं। ये तो  यह आदमी ही है, जो अतीत और भविष्य की फिक्र में अपना वर्तमान भी  बिगाड़ डालता है।
   आइए! कुछ और आगे बढ़ते हैं। आज का युग इसी भूत प्रियता की अगली कड़ी में फोटो प्रिय हो गया है कि मुख्य को भुलाकर बस फ़ोटोबाजी का दीवाना हो गया है। किसी  बारात में जाइए तो देखेंगे कि हर हाथ में एंडरायड मोबाइल का फ्लैश चमचमा रहा है। समय से विवाह होना तो कोई महत्व नहीं रखता, हाँ, स्टेज पर जब  फ़ोटोबाजी का मझमा शुरू हो जाता है तो शादी के लिए समय कम पड़ जाता है। फिर तो बाबा, नाना, नानी, मामा, मामी, भैया, भाभी, चाचा , चाची कोई भी दूल्हा दुल्हन के पीछे आशीर्वाद देने में पीछे नहीं रहना चाहता। पहले मैं, पहले मैं की जैसे होड़ लग जाती है। बारात जब चढ़ती है तो नाचने के फोटो खींचना तो अनिवार्य है,  हाथ में पांच सौ का नोट दिखाकर दस रुपए देने का काम भी खूब होता है। पुरुष  नहीं स्त्रियाँ क्यों पीछे रहें भला नाचने में, क्योंकि वे तो अच्छे  अच्छों को नाच नचाने का गुण हासिल किए रहती हैं। वे भी ताल से ताल मिलाकर प्रियंका चोपड़ा और ऐश्वर्या को भी मात देने का माद्दा लिए मैदाने-नाच में उतर पड़ती हैं। फिर देखिए स्मृतियां कैसे मोबाइल रूपी कैमरे में कैद की जाती हैं।अरे भाई ! जब ताजमहल नहीं बना सकते, किले खड़े नहीं कर सकते, कुतुबमीनार नहीं बनवा सकते, तो फ़ोटो खिंचवाने से भी जायँ?
   आज वर्तमान को भूतजीवी बनाने का साधन ही मोबाइल है! यदि सम्राट अशोक, चन्द्रगुत, राजा अमर सिंह तोमर, के समय में कैमरा मोबाइल थे ही नही, तो बेचारे कैसे फ़ोटो खिंचवाते? यदि होता तो बिना खिंचवाए क्यों रहते? इसलिए अपने को अमर बनाने के लिए किले खड़े करने पड़े, बाबड़ियाँ बनवानी पड़ीं।सम्राट अशोक ने तो बौद्घ उपदेशों से जंगल के पर्वत, चट्टानें, खम्भे और दरवाजे तक यादगार बना दिए। अपने अपने युग की बात है। आज फोटो युग है, तो आदमी फोटिया गया है। जन्म से लेकर श्मशान तक स्मृतियाँ कैद करने के लिए हर हाथ मोबाइल है। विवाह में फेरे मुहूर्त से पड़ें न पड़ें, कोई फर्क नहीं पड़ता, परन्तु हर गतिविधि का फोटो बनाकर वीडियो एलबम जरूर बननी चाहिए। 70 परसेंट में फोटो बाजी, बाक़ी सब में होगी शादी। अब तो श्मशान में भी मुर्दे के साथ फोटो खिंचवाने के सौभाग्य के क्षणों को भी लोग छोड़ना नहीं चाहते! यह प्रत्यक्ष देखी हुई बात है।मुझे इस बात का नहीं पता कि सुहाग कक्ष में भी क्या कुछ फ़ोटोबाजी के शौकीन लोग कैमरामैन को अंदर आने की अनुमति देते हैं। इस भूत प्रिय आदमी के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। मोबाइल तो वहाँ भी हाज़िर रहता ही होगा। पहले फ़ोटो, बाद में कुछ और। एक ड्रामा ही सही। असली का आनन्द भुलाकर फ़ोटोबाजी में डूब जाने का ये कैसा विचित्र दीवानापन है? कैसा विचित्र युग है? वर्तमान जाए भाड़ में ,भूत की तैयारी करो शान से। आदमी की ये भूत प्रियता उसे  कहाँ ले जाएगी। कैमरा ही मालिक है। सब कुछ मोबाइल चालित है। बदल गई  फ़ितरत कैसी कैसी, वर्तमान की कर दी ऐसी तैसी। भूत से बहुत ही प्यार करता है, भूतप्रियता 'शुभम' ने देखी ऐसी।।

💐शुभमस्तु !
✍🏼 लेखक©
🌱 डॉ.भगवत स्वरूप"शुभम"

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