बुधवार, 2 जनवरी 2019

आशाओं का देश [छन्द : कुण्डलिया]

स्वागत है नववर्ष का, दो हज़ार उन्नीस।
समृद्धि में ऊँचा उठे, भारत माँ का शीश।।
भारत माँ का शीश, शांतिमय हो खुशहाली।
खिले मृदुल नवहास, अधर युग में नव लाली।।
ज्ञान-सूर्य की रश्मियाँ, 'शुभम'बिखेरे भारत।
हृदय-सुमन से वर्ष का, बार-बार है स्वागत।।

ज्ञान और विज्ञान का , फैले शुभ संदेश।
विश्व -पटल पर कीर्ति की, फहरे ध्वजा स्वदेश।।
फहरे ध्वजा स्वदेश, आत्म निर्भर नर-नारी।
निर्धनता हो दूर, न कोई रहे दुःखारी।।
स्वस्थ रहे जनगण सदा, उदय 'शुभम' शशि भान।
कला और साहित्य का,सार्वभौम सत ज्ञान।।

आओ हम मिलकर करें, नव भारत साकार।
शिक्षा मानव धर्म को, दें नव रूपाकार।।
दें नव रूपाकार,न शोषण हो जन -जन का।
निज श्रम ईमान से, करें पोषण तन-मन का।
स्वच्छ वायु में साँस लो, प्रदूषण मत फैलाओ।
परिजीवीपन छोड़,'शुभं' अपने पथ आओ।।

अपने लालच -अनल में, मत झोंको ये देश।
लगा मुखौटे नित नए, बदल-बदल निज वेश।
बदल -बदल निज वेश, नहीं सोई अब जनता।
जाते हो उस ठौर, काम बिगड़े या बनता।।
कथनी करनी अलग है, दिखा'शुभं'नित सपने।
समझ रहा जनगण सभी, कितने हो तुम अपने।।

पति था पत्नी का पुरुष, पतित हुआ क्यों आज।
धर्म कर्म का त्याग कर, नेताजी के साज।
नेताजी के साज, सभी कुछ तेरी सत्ता।
पैसा पद की भूख , छीन मत तन के लत्ता।
ऊपर जाकर क्या बने, होगी कैसी गति।
सोचा 'शुभम'न अंश भर, मति के मारे पति।।

💐शुभमस्तु ! 
✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

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