उठो किसानो!उठो किसानो
अपने को तुम भी पहचानो।।
जग के पालनहार तुम्हीं हो,
अन्नदान के द्वार तुम्हीं हो।
दुग्ध शाकफल के तुम दाता,
तुम बिन मानव ग्रास न पाता।
निज जीवन आहुति को जानो,
उठो किसानो उठो किसानो।
कोई न समझा हृदय वेदना,
स्वेद बहाया नहीं चेतना,
नेताओं के झूठे वादे,
मीठी बातें कपट इरादे,
अपने अन्तरतम को छानो।
उठो किसानो उठो किसानो!
सस्ता बेचो मंहगा लाओ ,
मान और सम्मान लुटाओ,
बनिया भाव लगाता उसका,
अन्न धान फल सब्जी सबका
मालिक का कर्तव्य तो जानो।
उठो किसानो उठो किसानो।।
कब तक तुम संतोष धरोगे,
घर - घरनी को रुष्ट करोगे,
बच्चे कब तक कष्ट सहेंगे,
फटे वसन वे पहन रहेंगे,
उनके प्रति दायित्व तो जानो
उठो किसानो उठो किसानो।
धैर्य क्षमा की प्रतिमा तुम हो,
ज़्यादा को बतलाते कम हो,
अच्छा माल कटौती करता,
बनिया क्या मालिक से डरता?
सीमा 'शुभम'आप पहचानो।।
उठो किसानो उठो किसानो।।
💐शुभमस्तु!
✍🏼रचयिता ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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