चमचा या चमची कहो,
या नेता का भक्त।
नयन मूँद पीछे चले,
सदा रहे अनुरक्त।।11।।
पत्नी जी के भक्त हैं ,
दस सौ नहीं हज़ार।
थोड़े -थोड़े आप हम,
मिले नहीं आहार ।।12।।
पत्नी की भगती करो ,
जो चाहो सुख -चैन।
रात-दिवस भुगता करो,
उधर लगे जो नैन।।13।।
एक हाथ बटुआ लसे ,
दूजे कर मोबा'ल।
पीठ सुसज्जित पोटली,
ये पति जी हाल ।।14।।
पीहर का कूकर मिले,
करना उसका मान।।
होगी पत्नी खुश बहुत,
बढ़े आपकी शान।।15।।
गृहलक्ष्मी की भक्ति का,
सदा सुखद परिणाम।
नाचो अँगुली पर सदा,
गोपनीय यह काम।।16।।
नर आधा पत्नी बिना ,
पत्नी आधा अंग।
अर्धांगिनि कहते उसे,
रात-दिवस का संग ।।17।।
धन वैभव के भक्त जो,
मानवता से दूर।
कनक -चौंध की अंधता ,
नयनों में भरपूर।।18।।
दया धर्म करुणा रहित,
धन के अंधे भक्त।
स्वर्ण प्रदर्शन की ललक,
दानवता अनुरक्त ।।19।।
ढोंग धर्म का मन बसा,
तन पर टीका माल ।
कथा -भागवत भी करें,
पर धन्धे का जाल।।20।।
💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
☘ डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम"
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