गुरुवार, 24 मार्च 2022

कविता खेत-खलिहान की 🌾 [ दोहा ]

 

[फसल,कंचन,खेत,माटी, खलिहान]

               

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✍️ शब्दकार ©

🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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          🎋 सब में एक

फसल देख निज खेत में,हर्षित एक किसान

गया भ्रमण को कर्मरत,उर का भरा  निधान।

चना, मटर, गोधूम की,पकी फसल के खेत।

जीवन का पोषण करें,अन्न ,शाक समवेत।।


माटी से  कंचन उगे, अन्न,शाक ,फल मीत।

धन से घर भरने लगें,वही कृषक की जीत।।

कर्मों से कंचन बने, करें कर्म   शुभ  मीत।

जीवन वह  निस्सार है,चले सदा   विपरीत।।


मन किसान तन खेत है,उपजाएँ शुभ बीज।

कर्मों  की  खेती करें, करें  न देह   गलीज।।

पड़ी खेत   में  रेत  जो,उसका  पावन   हेत।

निंदा मत  कर  बाबरे, करती जीवन   सेत।।


धरती  माता  पोषती,माटी से   जग - जीव।

रखे  हाथ  पर हाथ को,बैठा रहता  क्लीव।।

माटी से नर तन बना,मिल माटी  में   क्षार।

अतः कर्म  तन  से  करें,बनें नहीं भू - भार।।


पड़े  हुए खलिहान में,कटी फसल  के  ढेर।

आँधी ,पानी से बचा,करना अधिक न  देर।।

पुरुष जुटे खलिहान में,पत्नी  उनके  साथ।

कंधे  से  कंधा  मिला,नित्य बँटाती   हाथ।।


       🎋  एक में सब  

माटी देती  खेत में,

                         कंचन -फसल महान।

नर - नारी निशिदिन करें,

                         कर्म खेत - खलिहान।।


🪴 शुभमस्तु !


२३.०३.२०२२◆७.१५ आरोहणं मार्तण्डस्य।


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