[बरजोरी ,चूनर, अँगिया, रसिया,गुलाल]
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✍️ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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🏵️ सब में एक 🏵️
बरजोरी हमसे नहीं, करो श्याम चितचोर।
अपयश हो ब्रजगाँव में,गली- गली में शोर।।
कान्हा बरजोरी करें,मिलें गोपियाँ राह।
दधि की मटकी छीनते, दधि खाने की चाह।।
चूनर धानी रंग की,पहने राधा देह।
कान्हा से मिलने चली,नंद गाँव के गेह।।
झीनी चूनर सोहती, ज्यों बाती की ओट।
मेरे उर पर कर रही, भारी भरकम चोट।।
होली का रँग ज्यों पड़ा, अँगिया चिपकी देह
रंग - रँगीली हो गई, पिचकारी के मेह।।
अँगिया के भीतर जले,होली की नित आग।
फागुन आया हे सखी,करता ऊधम फाग।।
रसिकराज रसिया खड़े, रोक हमारी गैल।
कैसे जाएँ राह में , छेड़े नटखट छैल।।
मुरलीधर रसिया बड़े, देख लजाए आज।
देह धरे वंदन करे, ब्रज में नत रसराज।।
होली आई साँवरे, कर में लिए गुलाल।
गोप-गोपियाँ चल पड़े,बदल गई पद-चाल।।
गाल गुलाबी लाल हैं,मुख में सुर्ख गुलाल।
चंदन सोहे भाल पर, कान्हा करे धमाल।।
🏵️ एक में सब 🏵️
अँगिया चूनर मत रँगे,
बरजोरी से श्याम।
तू रसिया चितचोर है,
रँग- गुलाल का काम।।
🪴 शुभमस्तु !
१६.०३.२०२२◆६.०० आरोहणं मार्तण्डस्य।
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