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✍️ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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गले से लगा लूँ ये जी चाहता है।
अरमां जगा लूँ ये जी चाहता है।।
मेरा रंग तेरे रँग में डुबा दूँ,
गड़हा खुदा लूँ ये जी चाहता है।
मैं काला तवा हूँ तू मैदा भटूरी,
छोले पका लूँ ये जी चाहता है।
सूखा छुहारा तू होली की गुझिया,
तुझमें ही समा लूँ ये जी चाहता है।
'शुभम' जेठ सूखा तू फागुन की बदली,
सपनों में ढालूँ ये जी चाहता है।
🪴 शुभमस्तु !
१९.०३.२०२२◆२.००पत्नम मार्तण्डस्य।
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