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✍️ शब्दकार ©
👑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
सत्य - मार्ग पर जो चलता है,
दानव -दल को वह खलता है,
सदा विजय सत की ही होती,
शल्य-सेज पर सत पलता है।
-2-
संघर्षों का नाम विजय है,
कष्टों की भी अपनी लय है,
पीछे मुड़कर नहीं देखते,
उन्हें न होता कोई भय है।
-3-
चलता रहा न रुकना जाना,
नित चलना ही मंज़िल माना,
विजय श्री उसको मिलती है,
जिसने लक्ष्य विजय का ठाना।
-4-
चींटी कभी निराश न होती,
दोष ढूँढ़ती कभी न रोती,
चढ़ती है हिमगिरि के ऊपर,
बीज विजय के नित ही बोती।
-5-
ठान लिया पीछे क्या हटना,
क्या दिल्ली क्या लखनऊ पटना,
विजय लक्ष्य है 'शुभम' तुम्हारा,
सुखद विजय की सुंदर घटना।
🪴 शुभमस्तु !
१०.०३.२०२२◆५.०० आरोहणं मार्तण्डस्य
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