सोमवार, 28 मार्च 2022

सजल 🌾🌾


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समांत-इयाँ।

पदांत  -अपदान्त।

मात्राभार -26.

मात्रा पतन-शून्य।

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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व्यक्ति से भी हैं वृहत्तर व्यक्ति की परछाइयाँ

घट रही   हैं बुद्धिमानी की सदा    ऊँचाइयाँ


पंक में खिलते कभी थे कमल मन को मोहते

छा गई  हैं उस सरोवर में सघनतम   काइयाँ


आदमी का हृदय उथला हो रहा है नित्य ही

अब नहीं होतीं मनुज में गहनतम गहराइयाँ


नियत कब बदलेगी तेरी अब नहीं विश्वास ये

एक  पल में तू बदलता चौदहों  अँगड़ाइयाँ


आदमी  के  चेहरे का तेज तो उड़  ही  गया

दिख रहीं  बदसूरती की साँवली-सी  झाइयाँ


भ्रमण कर देखा'शुभं'ने आदमी की चाल को

खोदता  है आदमी ही आदमी को   खाइयाँ


🪴शुभमस्तु !


२८.०३.२०२२◆७.३०आरोहणं मार्तण्डस्य।

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