[पैट्रोल, चुनाव,कोरोना, मँहगाई]
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✍️ शब्दकार ©
🚖 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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🌻 सब में एक 🌻
मँहगाई की मार से, जीना है दुश्वार।
पैट्रोल इतरा रही,चलें न वाहन कार।।
पेट रॉल करने लगे, कोई नहीं उपाय।
पैट्रोल उड़ने लगी,आसमान में हाय।।
निकल गई मँझधार से,तट पर भारी नाव।
खाया बहुत चुनाव ने,जनता पर ही ताव।।
मतमंगे करते सभी, वादे मधुरस घोल।
हर चुनाव के बाग में, बोलें कोकिल बोल।।
कोरोना के नाम से,जन- जन है भयभीत।
घबराहट बढ़ती सदा,आता है जब शीत।।
कारण क्रूर विषाणु का,मत बनना हे मीत।
कोरोना आए नहीं,हो जन-जन की जीत।।
डाहिन मँहगाई बड़ी,डसती अबल गरीब।
त्राहि - त्राहि जनता करे,बाँधे पीठ सलीब।।
धन-अभाव में जी रहे,अति गरीब बहु लोग।
मँहगाई की मार से, सहते स्वजन वियोग।।
🌻 एक में सब 🌻
मँहगाई को साथ में,
लेकर चले चुनाव।
कोरोना पैट्रोल भी,
नित्य दे रहे घाव।।
🪴शुभमस्तु !
३०.०३.२०२२◆१०.१५आरोहणं मार्तण्डस्य।
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