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✍️ शब्दकार ©
🍆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बैंगन जी की हुई सगाई।
भिंडी जी ने खुशी मनाई।।
मन ही मन आलू गुर्राया।
कैसे इसने उसे पटाया।।
मुझसे दूर - दूर रहती थी।
मुझसे वह भैया कहती थी।।
गुपचुप बैंगन पोट लिया है।
धोखा मेरे साथ किया है।।
मैं गोरा वह बैंगन काला।
सिर पर चोटी रखने वाला।।
भिंडी बोली चुप रह आलू।
उनको मत तुम कहना कालू।
उनके सिर पर मुकुट सोहता।
जो देखे वह सहज मोहता।।
मैं बैंगन जी की दीवानी।
उनसे ही शादी की ठानी।।
देख मुझे भी आलू भैया।
बैंगन जी अब मेरे सैंया।।
भैया भात हमें पहनाना।
सँग में लाल रतालू लाना।।
उनको 'शुभं' न कुछ भी कहना।
मैं उनके जीवन का गहना।।
🪴 शुभमस्तु !
१९.०३.२०२२◆२.३० पतनम मार्तण्डस्य।
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