सोमवार, 28 मार्च 2022

हेंचू जी उवाच 🐎 [ बाल कविता ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🐎 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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हेंचू  जी   हय    से   सतराये।

आँख   दिखाते   वे    गुर्राए।।


'घोड़ा   जी   तुम   गर्दभवंशी।

एक सदृश हम सब के अंशी।


हमसे अलग -थलग रहते हो।

उच्च अंश का क्यों कहते हो?


हम   दोनों   हैं   भाई -  भाई।

क्यों ऊँची निज जाति बताई?


छोटा कद   हमने  यह माना।

भैया   बड़ा   तुम्हें  है जाना।।


फिर भी तुम  इतने  इठलाते!

ताँगे   में   जुड़कर   इतराते।।


दूल्हे   को   ऊपर  बिठलाते।

हमको अपनी आँखदिखाते।'


घोड़ा बोला  'अनुज    हमारे।

तुम हो गर्दभ  हृदय- दुलारे।।


काम हमारा  अलग  बँटा है।

इससे कद क्या कभी घटा है!


मन से 'शुभम'काम निबटाओ

श्रमिक जंतु की पदवी पाओ।'


🪴शुभमस्तु !

२८.०३.२०२२◆११.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।

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