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✍️ शब्दकार ©
🙈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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निःशब्द हो जाती है
लेखनी,
सौंदर्य की देवी
पच्चीस वर्षीया
पूजनीया
हे गिरिजा टिक्कू!
1990 में
कश्मीर के बाँदीपोरा में
हुई तुम्हारे साथ
अमानवीय घटना की
करके कल्पना!
हैवानों ने
सामूहिक बुरे
काम के बाद,
आरा मशीन से
कैसे चीर दिया होगा
तुम्हारा शरीर?
मध्य में से
निजी अंग के मध्य
मातृत्व को रौंदते हुए
मस्तक के बीच!
क्या भरी थी
उनके दिमाग में
वीभत्स कीच!
कैसे रहे होंगे वे नीच!
ईश्वर उन्हें जहन्नुम
रसीद करे,
जो मानवता को
गलीज भाव से
शर्मसार करे!
जीते जी मरे!
सोते रहे नेता
टीवी और अख़बार,
न कोई केंडिल मार्च!
न कोई विरोध!
न कोई शोर!
क्या इन सभी को था
यह सब नरक स्वीकार?
धिक्कार ! धिक्कार !!
महा धिक्कार !!!
नहीं सुनाई दिया
किसी को
उस अबला का चीत्कार!
मर गई
मानवता उस दिन!
जब झेला होगा
उस महान नारी ने
वह निंदनीय छिन,
फट क्यों न
गया आकाश!
क्यों रही ये धरती
भी मौन!
थम गया क्यों
सर्वत्र व्यापक पौन,
अंततः वे नीच
थे कौन?
मानवता के नाम पर
कलंक!
अपने को कहते
अमन पसंद शांतिदूत!
अथवा मानव देह में
थे यमदूत?
नहीं! नहीं!!
ये यमदूतों का अपमान है!
यमदूत न्याय के दूत हैं,
सूर्यपुत्र यम के
आदेश के
उज्ज्वल रूप हैं!
कोई उचित नाम भी
क्या देना है!
इस धरा धाम पर
ऐसे हैवानों की
खड़ी निर्मम सेना है।
🪴 शुभमस्तु !
२४.०३.२०२२◆ ६.००पतनम मार्तण्डस्य।
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