शनिवार, 12 मार्च 2022

संघर्ष 🌅 [अतुकान्तिका ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम '

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संघर्षों की आग में

तपा हुआ मानुस

बन जाता है

खरा कंचन,

सजता है वही

बनकर किरीट

मस्तक का,

करता है 

जन -जन 

उसका अभिनंदन।


अपने पसीने की

कमाई हुई 

सूखी रोटियाँ

सुखी बनाती हैं,

चोरी से

चरित्र हनन के

व्यंजन सदा

कष्टकारी ही

होते हैं,

अपने राहों में

आदमी स्वयं 

शूल बोते हैं।


कामचोरों के

घर नहीं 

बसा करते,

परिजीवियों के

पोषण नहीं

शोषण ही

हुआ करते।


स्वावलम्बन,

संघर्ष,

सत्यता,

औऱ सुचरित

सफलता के

सोपान हैं,

संघर्ष की

 कसौटी पर ही

मानव होता 

महान है।


जो जूझा है,

उसी को

संसार ने पूजा है,

यों तो पेट 

भर लेते हैं

गली के श्वान भी,

दर-दर से

दुत्कारे जाते हुए,

अपमानित 

मार खाते हुए।


संघर्ष का इतर नाम

'शुभम' जीवन है,

वस्तुतः संघर्ष ही 

जीवन है,

संजीवनी है

मानव की

मानवता की,

देह धरे मानव की

सब मानव 

नहीं होते,

श्वान सूकरवत

जो भवसागर में

खा रहे हैं गोते।


🪴 शुभमस्तु !


११.०३.२०२२◆५.०० आरोहणं मार्तण्डस्य।

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