रविवार, 20 मार्च 2022

जीवन के अनुबंध 🦚 [ दोहा ]

 

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 ✍️ शब्दकार©

🪴 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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जीवन के अनुबंध का,आदि न अंत न छोर।

पिता ,पुत्र ,माता  सभी, देते हैं शुभ    भोर।।


बिना लिए अनुबंध के,जीवन ज्यों पशु कीट।

मानव तन धारण किया,नर कागा की बीट।।


पति पत्नी संतति सभी, जीवन के अनुबंध।

मर्यादा  से  आ  सके, सुंदर सुमन सुगंध।।


आया खाया चल दिया,क्या मानव का मोल।

जैसे शूकर श्वान हो,तन चमड़े का   खोल।।


मर्यादा   के   बन्ध   हैं, मानव के   कर्तव्य।

मर्यादा से जो  बँधा, उसका जीवन भव्य।।


पतन सहज है जीव का,प्रगति पंथ अति दूर

अहंकार करता सदा, नर को चकनाचूर।।


द्वेष भाव को त्यागकर, सहज जिओ रे मूढ़।

उर को विशद बनाइए, नहीं बना धी   कूढ़।।


 🪴 शुभमस्तु !


१६.०३.२०२२◆३.३५पत्नम मार्तण्डस्य।

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