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✍️ शब्दकार ©
⚱️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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गए खेत में लोटाधारी।
लोटा लिए हाथ में भारी।।
ढूँढ़ी आड़ झाड़ की कोई।
मूँज मेंड़ पर थी बिन बोई।।
वहीं जुगत करने की ठानी।
लोटा रखा भरा था पानी।।
झाड़ी में खरगोश एक था।
हर आहट पर वह सचेत था।।
आहट सुनकर बाहर भागा।
सोते से मानो वह जागा।।
लुढ़क गया पानी का लोटा।
भागा निकल शशक जो मोटा।
भौंचक भारी लोटाधारी।
व्यर्थ शौच की सब तैयारी।।
लोटा उठा शीघ्र वे धाए।
कल से झट लोटा भर लाए।।
🪴 शुभमस्तु !
२७.०३.२०२२◆६.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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