रविवार, 13 मार्च 2022

होली में 🎊💃🏻 [ गीतिका ]


■◆■◆■◆■◆■◆■◆★◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🎊 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

अँगड़ाई   ने     भरी   खुमारी होली    में।

शरमाई  है    युवा      कुमारी  होली   में।।


युगल   हथेली  हरी  हिना  से लाल   हुईं,

लगती    मुग्धा   प्यारी -प्यारी होली   में।


बौराए    हैं   आम  कोकिला कूक    रही,

विरहिन   को  है   भारी - भारी  होली  में।


धीरे -    से    भौंरे    फूलों   से  बतिआएँ,

फैल    रही   रजनी  उजियारी होली   में।


बजती  ढोलक ,थाप ढपों पर  जब  पड़ती,

कसक  मसकती  चोली  सारी   होली  में।


गेहूँ,   जौ      की    बाली   झूमीं बतियातीं,

चना ,मटर  की  ध्वनि झनकारी  होली  में।


खनन खनन ,खन,खन-खन बजते मंजीरे, 

झींगा   के  स्वर  की  लयकारी  होली  में।


राधा    के    सँग   रास   रचाते  मुरलीधर,

चला  रहे     हैं  वे    पिचकारी होली  में।


'शुभम'  गोपियाँ  नाच   घेरतीं कान्हा  को,

फगुआ  की  हम  भी हुरियारी होली   में।


🪴 शुभमस्तु !


१३.०३.२०२२◆६.०० पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...