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✍️ शब्दकार ©
🌞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
कर्तव्य से मुख मोड़ना,
निज लक्ष्य को ही छोड़ना,
अधिकार से पहले करें,
निज कर्मपथ क्यों तोड़ना?
-2-
कर्तव्य जो अपना करे,
साफल्य उस नर को वरे,
आलस्य क्षण भर का न हो,
दुख, कष्ट वह अपने हरे।
-3-
कर्तव्य रविकर ने किया,
विश्व का तम हर लिया,
अपनी धुरी पर घूमती,
भू ने सुखद जीवन दिया।
-4-
कर्तव्य से संसार है,
वरना जगत निस्सार है,
आलस्य नर की मीच है,
कर्तव्य मूलाधार है।
-5-
कर्तव्य को पहचान लें,
करणीय को यह जान लें,
अधिकार तो मिल जाएँगे,
यह भाव उर में ठान लें।
🪴 शुभमस्तु !
२२.०३.२०२२◆७.४५आरोहणं मार्तण्डस्य।
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