20 मार्च गौरैया दिवस पर
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✍️ शब्दकार ©
🐥 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मेरे घर की
रसोई के ऊपर
बने हुए वातायन में
रहता है
गौरैया का
एक परिवार,
भोला-भाला
व्यस्त स्वयं में
प्रातः से संध्या तक।
होते ही भोर
चहचहाहट से
घर भर देती हैं,
ऊर्जा सकार की
अपरिमित,
घर के हर
कौने -कौने में
कर देती हैं,
अपनी, अपने
शावक के
उदर पूर्ति की
चिंता में जुट
जाती हैं,
ला -लाकर
दाना -दुरका
अपनी नन्हीं चोंचों से
उन्हें खिलाती हैं,
वे प्यारी -प्यारी चिड़ियाँ
भोली गौरैया
कहलाती हैं।
बाहर लटकी
हनुमान किरीट की
लतरों में
जाने क्या -क्या
खोज -खोज कर
लाती हैं,
जब उन्हें देखता हूँ
उनको उड़ता
दाना रोटी खाते,
पानी पीते,
मन बाग -बाग
हो जाता है।
बैठी दर्पण के ऊपर
चोंच मार कर
अपने ही प्रतिबिम्ब
से लड़ती है,
भोली गौरैया,
कर लेती लहूलुहान
चोंच को
कैसे समझाए
'शुभम' उस भोली को।
आओ हम सब
रक्षक बन कर
नन्हीं चिड़िया के
अस्तित्व को
बचाएँ,
स्वयं रहें प्रमुदित
गौरैया को भी
पालें -पोसें
मानव से अति मानव
बन जाएँ ,
पत विहीन
पुतिन की तरह
पतन मत करें
जीव हिंसा से
विश्व बचाएँ।
🪴 शुभमस्तु !
२०.०३.२०२२◆५.१५पतनम मार्तण्डस्य।
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