मंगलवार, 22 मार्च 2022

जल है तो कल है! 💦 [ दोहा गीतिका ]


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🙏 शब्दकार©

💦 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम' ]

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जल से कल है जीव का,जल ही जीवन मीत

जल की रक्षा हम करें,समय न  जाए  बीत।।


जल- दोहन दूषण करे,भूल गया  यह  बात,

जल से  ही  सुंदर सदा,पावस,  गर्मी, शीत।


खाद रसायन की लगा, उपजाते  फल, अन्न,

वे नर जग भवितव्य से,लेश नहीं  भयभीत।


विश्व-ताप नित बढ़ रहा,क्षीण पर्त  ओजोन,

रोग नित्य बढ़ने लगे,मनुज प्रकृति  विपरीत।


पर्वत जब तक नीर दें, तब तक सरि जीवंत,

सागर   सूखेंगे   सभी,  मेघ  न  बरसें   मीत।


चेत!चेत!! नर चेत जा,नष्ट न कर    भंडार,

जल बिन सब निस्सार है,होगी कभी न जीत


जल  पीयूष तेरा 'शुभम',और न  कोई   राह,

जीवन  के संगीत में,जल से ही  हर   गीत।


🪴 शुभमस्तु !


२२.०३.२०२२◆११.००आरोहणं मार्तण्डस्य।

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