मंगलवार, 15 मार्च 2022

द्वेष जलाएँ होली में 🎊 [ गीत ]


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✍️ शब्दकार ©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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आओ  उर  के   द्वेष   जलाएँ,

हम सब   मिलकर   होली में।

शिकवे - गिले  मिटाएँ  अपने,

मधुर  शब्दरस  -  बोली   में।।


अहंभाव      दूरियाँ    बढ़ाता,

हृदय   नहीं   मिल   पाते   हैं।

मिलते गले , गले   से   केवल,

भाव   नीम  हो    जाते    हैं।।

यत्न  करें    ऐसा नर -   नारी,

बैठें  सँग  -  सँग   डोली   में।

आओ  उर  के  द्वेष   जलाएँ,

हम  सब मिल कर  होली में।।


है  सामाजिक  पर्व  होलिका,

मिलकर  आग    जलाते   हैं।

नए अन्न  को  भून  आँच पर,

उर से   उर   मिल  जाते  हैं।।

उपले ,लकड़ी और गुलरियाँ,

जल जाते झल -   झोली  में।

आओ  उर   के   द्वेष जलाएँ,

हम सब मिलकर  होली  में।।


रँग, गुलाल,चंदन ,अबीर का,

तिलक   सजाते   नर - नारी।

देवर - भाभी ,जीजा - साली,

मार   रहे   रँग  - पिचकारी।।

फोड़   रहा    कोई    गुब्बारे ,

प्रिय   भाभी   की चोली  में।

आओ  उर के   द्वेष  जलाएँ,

हम सब मिलकर  होली में।।


नाच  रहे  हैं   बालक - बाला,

उछल -   कूदते     नर -नारी।

ढप, ढोलक ,करताल बजाते,

भाँग  पी   रहे   कुछ  भारी।।

धूम  मची है दिशा - दिशा में,

धूल   उड़ाती    टोली     में ।

आओ  उर के   द्वेष   जलाएँ,

हम सब मिलकर  होली में।।


गाँव -गाँव में नगर - नगर में,

जन -मानस   का  मेला  है।

मादक काम  गीत  में उतरा,

'शुभम'  रंग  में   खेला   है।।

लाल रंग की छटा प्यार की,

अरुण   गुलाली    रोली  में।

आओ  उर के द्वेष   जलाएँ,

हम सब मिलकर होली में।।


🪴 शुभमस्तु!


१५.०३.२०२२◆७.३०आरोहणं मार्तण्डस्य।

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