पुलवामा हमले में शहीद हुए देश के अमर जवानों का दुःखद समाचार जानकर मन स्तब्ध रह गया। कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करें?क्या कहें ?क्या लिखें? कश्मीर को लेकर आये दिन इस प्रकार हमले हो रहे हैं। हमारे देश के नेता और सत्ता पक्ष आख़िर क्या कर रहा है? केवल शृद्धाञ्जली देने से काम चलने वाला नहीं है। देश क्रोश में है। शहीदों के सम्मान में उनकी आत्मा की शांति के लिए देश भर में मोमबत्तियां जलाकर शृद्धाञ्जली अर्पित की जा रही है। विरोध में पड़ौसी देश के विरुद्ध पुतले दहन किए जा रहे हैं, लेकिन क्या इतने से ही हमारे कर्तव्य की इतिश्री होने वाली है? ये हादसे प्रश्न पर प्रश्न खड़े कर रहे हैं।
विपक्ष को ऐसे संकट की घड़ी में देश की रक्षा और अस्तित्व के लिए एक होकर सहयोग करना चाहिए। जब देखा यह जा रहा है कि वह ऐसे वक़्त में अपनी रोटियाँ सेंकने लगता है। अरे नेताओ ! कीचड़ उछालने के लिए पांच साल पड़े हैं। पक्ष और विपक्ष पांच वर्ष से औऱ करता ही क्या रहा है? बस एक दूसरे की कमियां निकलना अपनी प्रशंसा के ढोल पीटना और अतीत के विकास को विस्मृत कर देना, बस कीचड़ - उछाल के ये ही प्रमुख मुद्दे हैं। जब हम पूरे समय रात -दिन इसी छींटाकसी में ही लगे रहेंगे, तो देश के लिए सोचने के लिए वक़्त ही कहाँ बचेगा! समय तो उतना ही है, चाहे उसे कीचड़-उछाल में बरवाद कर दो या देश की रक्षा के लिए सोचने में , उपाय करने में बरवाद कर दो।
प्राथमिकता देश की रक्षा होनी चाहिए। यदि देश है तो हम हैं, यदि देश ही सुरक्षित नहीं तो हम कब तक रहेंगे!इसलिए देश के प्रत्येक नागरिक का ये दायित्व है कि वह देश की रक्षा के लिए अपनी सोच विकसित करे और उसी के लिए हमारी सोच सदैव सकारात्मक ही रहे। जब हम देश रक्षा के बिंदु पर एक होकर रहेंगे, संगठन सुदृढ़ और सशक्त होगा तभी हम शेष रहेंगे।
सता पक्ष के एक सांसद का बेतुका और गैरजिम्मेदाराना बयान सुनकर उसकी नादानी औऱ बचकानी हरक़त पर बहुत विदीर्णता मन में आती है। ऐसे संवेदनशील समय में सत्ता पक्ष के नेताओं के ऐसे बयान देशद्रोह की सीमा में आने चाहिए। इन्हें सांसद पद से पदच्युत किया जाना चाहिए। लेकिन क्या किया जाए सत्ता-पक्ष के नेता ने कहा है, इसलिए अगले दिन के अखबारों में उसको तोड़मरोड़कर पेश कर कर दिया जाएगा और उसके ऊपर दही -बूरा लीपकर बराबर कर दिया जाएगा। अगर यही बात किसी विपक्षी नेता ने कही होती, तो सत्ताधारी उसे ले उड़ते।और उसे देश द्रोही और न जाने कितनी कीचड़ सनी पदवियों से विभूषित कर चुके होते।
जब हमारी रक्षा करने वाले ही सुरक्षित नहीं तो हम सुख की नींद कैसे सो सकते हैं। आज तरस आता है हमें ऐसे निम्न सोच वाले नेताओं की बुद्धि पर। हमें कष्ट होता है कि ऐसे ही प्रबुद्ध मूर्ख सांसदों को जनता क्यों चुनती है? क्यों ऐसे अशिष्ट नेताओं को राजनीति से बहिष्कृत नहीं किया जा रहा ! कटु सत्य भी समय और परिस्थिति को दृष्टि-गोचर करते हुए बोला जाता है। ये दिवंगत आत्माओं का अपमान है। क्या श्मशान में या उसके परिजनों के समक्ष ये कहना उचित और समयानुकूल होगा कि मरने दो उन्हें तो मरना ही था? ये विवेक नहीं है। उस समय परिजनों के हृदय पर बरछी नहीं चल जाएंगी? यदि नेताजी का एक बेटा ऐसे हादसों में शहीद हो जाता तो क्या वे ये शब्द कहते कि जवान तो मरते गई हैं, वे मरने के लिए ही होते हैं। शर्म आनी चाहिए उस नेता को अपने इस बयान पर! चुल्लू भर पानी में डूबकर मर मर जाना चाहिए। हमें शर्म आती है कि हमारे देश और प्रदेश में ही नहीं सत्ताधारी दल के दलदल में ऐसे कीचड़ भी फ़लफूल रहे हैं!
देश के उन अमर जवानों को मेरी हार्दिक शृद्धाञ्जली, जिन्होंने देश रक्षा हित प्राणपण से अपने कर्तव्य का निर्वाह किया। परम्पि ता परमात्मा उनकी आत्मा को परम् शान्ति प्रदान करें।औऱ उनके परिजनों को इस असीम
वज्राघात को सहन कर पाने के सामर्थ्य प्रदान करे। धन्य हैं वे माताएँ जिन्होंने ऐसे सपूत पैदा किए जो देश के काम आए। धन्य हैं वे पिता जिन्होंने अपने लाडलों को देश को समर्पित किया। धन्य हैं वे बहनें जिन्होंने अपने सुहाग के सिंदूर को सार्थक कर देश की रक्षा के योगदान में जी जान लगा दी। धन्य वे छोटे -छोटे नन्हें बच्चे जिनके पिता अब प्यार से उनके सिर पर हाथ नहीं फेर सकेंगे , क्योंकि उन्होंने अपने अस्तित्व की बाजी देश रक्षा के लिए लगा दी है।
जय हिंद ! जय जवान!!
देश के शहीद अमर रहें, अमर रहें।।
💐शुभमस्तु !
✍ लेखक ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
विपक्ष को ऐसे संकट की घड़ी में देश की रक्षा और अस्तित्व के लिए एक होकर सहयोग करना चाहिए। जब देखा यह जा रहा है कि वह ऐसे वक़्त में अपनी रोटियाँ सेंकने लगता है। अरे नेताओ ! कीचड़ उछालने के लिए पांच साल पड़े हैं। पक्ष और विपक्ष पांच वर्ष से औऱ करता ही क्या रहा है? बस एक दूसरे की कमियां निकलना अपनी प्रशंसा के ढोल पीटना और अतीत के विकास को विस्मृत कर देना, बस कीचड़ - उछाल के ये ही प्रमुख मुद्दे हैं। जब हम पूरे समय रात -दिन इसी छींटाकसी में ही लगे रहेंगे, तो देश के लिए सोचने के लिए वक़्त ही कहाँ बचेगा! समय तो उतना ही है, चाहे उसे कीचड़-उछाल में बरवाद कर दो या देश की रक्षा के लिए सोचने में , उपाय करने में बरवाद कर दो।
प्राथमिकता देश की रक्षा होनी चाहिए। यदि देश है तो हम हैं, यदि देश ही सुरक्षित नहीं तो हम कब तक रहेंगे!इसलिए देश के प्रत्येक नागरिक का ये दायित्व है कि वह देश की रक्षा के लिए अपनी सोच विकसित करे और उसी के लिए हमारी सोच सदैव सकारात्मक ही रहे। जब हम देश रक्षा के बिंदु पर एक होकर रहेंगे, संगठन सुदृढ़ और सशक्त होगा तभी हम शेष रहेंगे।
सता पक्ष के एक सांसद का बेतुका और गैरजिम्मेदाराना बयान सुनकर उसकी नादानी औऱ बचकानी हरक़त पर बहुत विदीर्णता मन में आती है। ऐसे संवेदनशील समय में सत्ता पक्ष के नेताओं के ऐसे बयान देशद्रोह की सीमा में आने चाहिए। इन्हें सांसद पद से पदच्युत किया जाना चाहिए। लेकिन क्या किया जाए सत्ता-पक्ष के नेता ने कहा है, इसलिए अगले दिन के अखबारों में उसको तोड़मरोड़कर पेश कर कर दिया जाएगा और उसके ऊपर दही -बूरा लीपकर बराबर कर दिया जाएगा। अगर यही बात किसी विपक्षी नेता ने कही होती, तो सत्ताधारी उसे ले उड़ते।और उसे देश द्रोही और न जाने कितनी कीचड़ सनी पदवियों से विभूषित कर चुके होते।
जब हमारी रक्षा करने वाले ही सुरक्षित नहीं तो हम सुख की नींद कैसे सो सकते हैं। आज तरस आता है हमें ऐसे निम्न सोच वाले नेताओं की बुद्धि पर। हमें कष्ट होता है कि ऐसे ही प्रबुद्ध मूर्ख सांसदों को जनता क्यों चुनती है? क्यों ऐसे अशिष्ट नेताओं को राजनीति से बहिष्कृत नहीं किया जा रहा ! कटु सत्य भी समय और परिस्थिति को दृष्टि-गोचर करते हुए बोला जाता है। ये दिवंगत आत्माओं का अपमान है। क्या श्मशान में या उसके परिजनों के समक्ष ये कहना उचित और समयानुकूल होगा कि मरने दो उन्हें तो मरना ही था? ये विवेक नहीं है। उस समय परिजनों के हृदय पर बरछी नहीं चल जाएंगी? यदि नेताजी का एक बेटा ऐसे हादसों में शहीद हो जाता तो क्या वे ये शब्द कहते कि जवान तो मरते गई हैं, वे मरने के लिए ही होते हैं। शर्म आनी चाहिए उस नेता को अपने इस बयान पर! चुल्लू भर पानी में डूबकर मर मर जाना चाहिए। हमें शर्म आती है कि हमारे देश और प्रदेश में ही नहीं सत्ताधारी दल के दलदल में ऐसे कीचड़ भी फ़लफूल रहे हैं!
देश के उन अमर जवानों को मेरी हार्दिक शृद्धाञ्जली, जिन्होंने देश रक्षा हित प्राणपण से अपने कर्तव्य का निर्वाह किया। परम्पि ता परमात्मा उनकी आत्मा को परम् शान्ति प्रदान करें।औऱ उनके परिजनों को इस असीम
वज्राघात को सहन कर पाने के सामर्थ्य प्रदान करे। धन्य हैं वे माताएँ जिन्होंने ऐसे सपूत पैदा किए जो देश के काम आए। धन्य हैं वे पिता जिन्होंने अपने लाडलों को देश को समर्पित किया। धन्य हैं वे बहनें जिन्होंने अपने सुहाग के सिंदूर को सार्थक कर देश की रक्षा के योगदान में जी जान लगा दी। धन्य वे छोटे -छोटे नन्हें बच्चे जिनके पिता अब प्यार से उनके सिर पर हाथ नहीं फेर सकेंगे , क्योंकि उन्होंने अपने अस्तित्व की बाजी देश रक्षा के लिए लगा दी है।
जय हिंद ! जय जवान!!
देश के शहीद अमर रहें, अमर रहें।।
💐शुभमस्तु !
✍ लेखक ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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