शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

हम 'जनता ' हूँ [अतुकान्तिका]

 आपने रैली की 
तो आपके साथ,
उन्होंने रैली की 
तो उनके भी साथ,
अपना काम तो भइए
सबका साथ देना है,
सबका साथ 
आप सबका विकास,
क्योंकि -
'हम तो जनता हूँ'।

हम तो आपको भी जनता हूँ,
उनको भी जनता हूँ,
जनना ही तो अपन का काम है,
आपको उनको  सबको
जनते जनते ही
तो अपना नाम जनता है, 
जी हाँ,
'हम जनता हूँ।'

अपने 'जन गण मन ' में
ये जो जन है
बार -बार यही तो कहता है-
जन जन जन 
तू  तो  बस 'जन ता' है
क्योंकि तू जनता है
इसीलिए तू जनता है।

तुम्हारी रैली में गया,
उनकी रैली में गया,
सबकी रैली में गया,
लेकिन मैं तो हूँ ही 
आप के लिए
उनके लिए
सबके लिए
बस जनता। 

कोई पहचान नहीं मेरी ,
सबके के लिए अनजान,
सबके लिए नया,
सबके उपयोग ही नहीं
उपभोग की वस्तु 
'हम जनता हूँ।'

सबका साथ देकर ही
सबका विकास होगा,
आपका होगा
उनका होगा
हमारा हो या न हो,
क्योंकि मैं  मानव कहाँ?
वस्तु ही तो हूँ,
जहाँ  भी लगा दो,
लगा रहना है,
कुछ  भी नहीं कहना है,
मगर कुछ भी नहीं कहना है,
हवा के साथ बहना,
हवा के साथ रहना, 
एक निर्जीवता के 
अहसास के साथ
अंततः वही ढाक के दो पात
क्योंकि
'हम जनता हूँ'।'


हमें मिलता क्या है!
मीठे -मीठे भाषण,
विष -वास भरे आश्वासन,
राशन की लाइन का राशन,
नियम कानून से बंधा अनुशासन,
हम तो हूँ उनका खाने का 
मिट्टी का वासन,
हमेशा आम ही रहना
चुसने की नियति को सहना,
 'हम जनता हूँ।'
'हम जन ता हूँ ।।'

💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...