जिसका नहीं होता है
कभी भी क्षरण,
करता रहता है मानव
जिनका अहर्निश वरण,
वह ' अक्षर ' है,
इसीसे शब्द वाक्य वार्ता
स्वर अमर है,
अक्षर है ब्रह्म
जो त्रिकाल सत्य है,
शाश्वत है,
इसीलिए शब्द ब्रह्म है
न इससे
जो तृण भर भी कम है,
इसमें नहीं कण भर
भ्रम है।
आज भी गीता की
अमर वाणी संन्देश,
नारायण श्रीकृष्ण के
नर अर्जुन को उपदेश,
गुंजायमान हैं ब्रह्मांड में,
नहीं सुन पाते हमारे कान
भरे उन्माद में,
खोखली अभिजात्यता
श्रेष्ठता जाति की वंश की
कर्मगत विमूढ़ता अपार,
चौरासी लाख योनियों का
लहराता सागर
ऊँची लहरें अपरम्पार।
कगारें तोड़कर दरिया
नियंत्रण के बाहर,
अहंकार के वशीभूत
अक्षर और शब्द सीमा से
होता है बाहर,
अनीति अनय का
खुलता द्वार,
शोषण की खिड़की
खुल रही हर बार,
बढ़ रहा
मानसिक प्रदूषण
जो नहीं है
"शुभम" मानव का भूषण।
💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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