भाव में भगवान का,
शुभ वास होता है यहाँ।
भगवान भूखे भाव के,
अन्यथा पाहन वहाँ।।
मन के मंदिर में विराजे,
और मैं ढूँढूँ कहाँ!
गंगा कठौती में 'शुभम',
साँच का आसन जहाँ!!
भाव के दो बेर जूठे,
बहुत हैं श्रीराम को।
छिलके केले के सुहाते,
पांडवों के श्याम को।।
गोपियों के नयन में,
बस नेह का नवनीत है।
गोपाल बालक कृष्ण,
उनका 'शुभम' मनमीत है।।
भाव उर का छलक पड़ता,
भावित दृगों की कोर से।
पर्वतों से नीर बहता,
संध्या अहर्निश भोर से।।
अनवरत सरिता उमड़ती,
भाव भर सागर जहाँ।
वेदनामय अश्रु बहते,
खारपन होता वहाँ।।
भाव ही हथियार है,
और भाव ही मरहम यहाँ।
भाव ही संसार है,
उर -भाव ही सरगम यहाँ।।
जो कुभावों ने लगाए,
घाव वे भरते नहीं।
'शुभम'भावों के सुमन दो,
सूखते मरते नहीं ।।
भाव के उर - भुवन में,
काँटे उगाओ या सुमन।
रूक्ष वन की झाड़ियाँ,
या उद्यान के पौधे प्रमन।।
सत्य के निर्मल सलिल से,
सींचना सद्धर्म है।
सद्भाव की बेलें सजा,
तेरा 'शुभम' सत्कर्म है।।
💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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