सूरज निकला हुआ सवेरा,
अंधकार का टूटा घेरा।
तारे डूबे नील गगन में,
चंदा मामा गए सदन में,
स्वच्छ हवा का लगता फेरा,
सूरज निकला हुआ सवेरा।
पेड़ों पर सब चिड़ियाँ बोलीं,
मधु लहरी कलरव ने घोली,
कुक्कड़कूँ का बोल घनेरा,
सूरज निकला हुआ सवेरा।
हँसने लगे फूल डाली पर,
कलियाँ चटकीं दे ताली कर,
सद सुगंध ने डाला घेरा,
सूरज निकला हुआ सवेरा।
बेलें झूल रही हैं सारी,
महक रही धनिए की क्यारी,
लहराता उपवन है मेरा,
सूरज निकला हुआ सवेरा।
भेड़ बकरियाँ गायें जागीं,
चारा पानी सानी मांगीं,
रेंके गैया भैंस बछेरा,
सूरज निकला हुआ सवेरा।
मुन्ना जागो मुन्नी जागो,
कम्बल और रजाई त्यागो,
बाहर कुहरा श्वेत घनेरा,
सूरज निकला हुआ सवेरा।
दही बिलोती जागीं अम्मा,
तुलसी की करती परिकम्मा,
दादी खाँसी नाती टेरा,
सूरज निकला हुआ सवेरा।
विद्यालय का घण्टा बजता,
मुन्ना पेंट सूट में सजता,
बस्ता भारी है बहुतेरा ,
सूरज निकला हुआ सवेरा।
हुआ जागरण प्रातः - वेला,
'शुभम' चेतना का नवमेला,
आलस निद्रा हटा अँधेरा।
सूरज निकला हुआ सवेरा।।
💐 शुभमस्तु !
✍🏼 रचयिता ©
डॉ.भगवत स्वरूप'शुभम'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें