सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

पुलवामायनी:1 [छन्द:चौपाई]

आग भयंकर पुलवामा की।
हर शहीद की कुलवामा की।।

दुःखी देश का हर नर नारी।
चिंतित आक्रोशित हैं भारी।।

बंद करेंगे   हुक्का-पानी ।
याद आयगी उसको नानी।।

लगते थे जो कितने भोले।
दूध पिया बनगए सपोले।।

आस्तीन के साँप बन गए।
डंस कर फ़न को उठा तन गए।।

नया नहीं इतिहास कहानी।
सभी जानते दुनिया जानी।।

बदला बदला बदला बदला।
यही बोल हर मुख से निकला।

कब तक तेरी खैर मनेगी!
दुनिया देखे और सुनेंगी।।
नीति न नियम पंच समझौता।
मान्य न तुझको कुछ भी होता।।

आँख खोलकर तूने देखा!
बनी हुई है  सीमा-रेखा।।

बार -बार उल्लंघन करता।
नहीं ख़ुदा से अपने डरता।।

कब तक क्षमा ढीठ को करना।
अब तो यही मारना -मरना।

निज रक्षा का धर्म यही है।
दुश्मन का संहार सही है।।

घर में घुस आता है कायर।
डायनामाइट बॉम्ब के फायर।।

आरपार अब होना ही है।
शूल शूल को बोना ही है।।

सिर ऊपर निकला है पानी।
कुटिल सियारनी है गुर्रानी।।

घुटने टेक कुबुद्धि कुचाली।
देख प्रथम निज हालत माली।।

मत इतरा मत ताल ठोंकना।
कुत्ते जैसा नहीं भोंकना।।

दाँत तोड़कर फेंकेंगे हम।
निकल जाएगा पल भर में दम।।

भारत माता के अवतारी।
नहीं रखेंगे कभी उधारी।।

उड़ जाएगा धुआँ गगन में।
अणुबम छोड़े नहीं भवन में।।

छोड़ कुराह राह पर आजा।
निकल न पाए तेरा जनाज़ा।।

बिलखेंगीं तेरी कुलवामा।
भूलेंगे न कभी पुलवामा।।

💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...