रविवार, 24 फ़रवरी 2019

जैसे को तैसा [गीतिका]

तुम भी सही  हम भी सही,
फिर द्वंद्व है किस बात का।
सोच में   अंतर   बहुत   है,
फासला  दिन -  रात  का।।
नवनीत  गोबर  पर   सजा,
रूप  असली      है   यही।
झूठ सच की   आड़   में है,
'शुभम'  ने   साँची   कही।।

धैर्य  को  कमज़ोर  समझे, 
भूल   यह      तेरी      बड़ी।
फ़ल न करनी का  मिलेगा?
आ    रही    है  वह   घड़ी।।
कच्ची     गोली      खेलना,
आता  नहीं हमको 'शुभम',
तू    चलाए     ईंट -  पत्थर ,
बरसायेंगे    बारूद     बम।। 

पलित  जो   छोटे   सपोले,
नाग  विषधर    बन    गए।
दूध   पीकर    मातृभू   का,
प्रसविनी   को   डंस   गए।।
मुँह   मुखौटों   में छिपाकर,
कब  तक   बचेंगे   साँप वे।
रगड़कर फ़न को शिला पर,
तोड़   दें   विष - दाँत    ये।।

आज भी  कहती  है नागिन,
एक     मौका      और   दो।
इन  शहीदों  को   भुलाकर,
आतंकियों  को  छोड़  दो।।
नाग     हैं     महबूब    तेरे,
तो  चली   जा     तू   वहाँ।
दाल तेरी अब   न   गलनी,
बिल    खुदा    तेरा  जहाँ।।

गीदड़ों   की भभकियाँ  ये,
बहुत    देखीं        शेर   ने।
बिल  में सेना को छिपाकर,
गीदड़ों       से          घेरने-
तू  चला  आता   है हम पर,
रौब       अपना       गाँठने।
ले के  टुकड़ा   पाक  पहले,
तू   चला    क्या     बाँटने??

💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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