चश्मा आँखों पर लगा,
ईयर ईयर - फोन।
चपल चाल धीमी नहीं,
रसना धरे न मौन।।
रसना धरे न मौन,
न सोचे बुरा -भला भी।
बोले ऐसे बोल ,
न जाने वाक- कला ही।।
विज्ञानी कर खोज ,
करो कुछ नया करिश्मा।
जीभ - द्वार लग जाय ,
'शुभम' आँखों-सा चश्मा।।
बैठी हों दो चार जब ,
सुमुखि सहेली नार।
ज्यों चिड़ियाँ चहचह करें,
लहराती द्रुम - डार।।
लहराती द्रुम - डार ,
समझ में बात न आवे।
बात बात में बात ,
बात में बात बनावे।।
'शुभम' न समझा राज,
खरहा से कहे खरैटी।
बिना रुके संवाद,
कर रही नारी बैठी।।
पहिए गाड़ी के युगल,
पति - पत्नी नर- नारि।
ट्रैक्टर के जैसे न हों ,
चलते सोच - विचारि।।
चलते सोच - विचारि,
हवा भी हो इक जैसी।
थोड़ी भर दी अधिक,
करेगी ऐसी - तैसी।।
सोच समझ शुभ लेना ,
अपना पहिया भइये।
बे - पटरी घर चले ,
न लेना ऐसे पहिए।।
नर - नारी हैं एक -से ,
नहीं सत्य यह बात।
अलग माल कुछ तो लगा,
अलग - अलग है धात।।
अलग - अलग है धात,
अधूरे छोड़े दोनों ।
नारि हुई वाचाल ,
घटित होता अनहोनों।
परिपूरक दोनों रहे,
विषमता उनमें भारी।
कमी एक की,
दूजे में ढूँढ़े नर -नारी।।
नेह बिना दीपक नहीं,
करता दिव्य प्रकाश।
बिना नेह नर -नारि के,
मुख पर निर्मल हास।।
मुख पर निर्मल हास,
नेह भीगी बाती से।
दम्पति -सदन प्रकाश,
सीप मोती स्वाती से।।
नहीं चाँदनी चाँद बिन ,
तनिक नहीं संदेह।
मानव-जीवन तब 'शुभम',
मिले गंग-जल नेह।।
💐 शुभमस्तु!
✍🏼 रचयिता ©
🌺 डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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