बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

बात बात में बात [छन्द:कुण्डलिया ]

चश्मा   आँखों   पर लगा,
ईयर          ईयर  - फोन।
चपल  चाल  धीमी  नहीं,
रसना    धरे    न   मौन।।
रसना    धरे    न     मौन,
न सोचे   बुरा -भला भी।
बोले        ऐसे       बोल ,
न जाने वाक- कला ही।।
विज्ञानी    कर      खोज ,
करो  कुछ नया करिश्मा।
जीभ -  द्वार   लग  जाय ,
'शुभम' आँखों-सा चश्मा।।

बैठी       हों  दो   चार  जब ,
सुमुखि       सहेली      नार।
ज्यों चिड़ियाँ  चहचह करें,
लहराती        द्रुम  -  डार।।
लहराती          द्रुम - डार ,
समझ  में   बात   न  आवे।
बात    बात      में     बात ,
बात    में    बात    बनावे।।
'शुभम'   न   समझा  राज,
खरहा   से    कहे   खरैटी।
बिना        रुके      संवाद,
कर   रही    नारी    बैठी।।

पहिए   गाड़ी   के   युगल,
पति - पत्नी     नर- नारि।
ट्रैक्टर   के     जैसे   न  हों ,
चलते      सोच - विचारि।।
चलते       सोच - विचारि,
हवा   भी   हो   इक जैसी।
थोड़ी   भर   दी   अधिक,
करेगी         ऐसी - तैसी।।
सोच   समझ  शुभ  लेना ,
अपना   पहिया     भइये।
बे - पटरी     घर      चले ,
न   लेना     ऐसे    पहिए।।

नर -    नारी   हैं    एक -से ,
नहीं    सत्य    यह    बात।
अलग  माल  कुछ तो लगा,
अलग -  अलग  है  धात।।
अलग -  अलग   है  धात,
अधूरे       छोड़े     दोनों ।
नारि     हुई         वाचाल ,
घटित  होता      अनहोनों।
परिपूरक     दोनों      रहे,
विषमता   उनमें     भारी।
कमी        एक          की,
दूजे  में  ढूँढ़े    नर -नारी।।

नेह  बिना    दीपक   नहीं,
करता    दिव्य     प्रकाश।
बिना नेह    नर -नारि  के,
मुख  पर   निर्मल  हास।।
मुख  पर   निर्मल    हास,
नेह    भीगी    बाती   से।
दम्पति -सदन     प्रकाश,
सीप   मोती    स्वाती से।।
नहीं  चाँदनी    चाँद बिन ,
तनिक      नहीं      संदेह।
मानव-जीवन तब 'शुभम',
मिले     गंग-जल    नेह।।

💐 शुभमस्तु!
✍🏼 रचयिता ©
🌺 डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

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