बकरे की अम्मा बता,
छिपी कहाँ किस माँद।
जीना तुझे न शांति से,
करतीछिप अपराध।।
शर्म नहीं आती तुझे,
करता जो घुसपैठ।
रस्सी सारी जल गई,
फिर भी बाकी ऐंठ।।
तेरे कौन हिमायती,
जो हैं तेरे साथ ।
आ जाएं जो सामने ,
कर लें दो - दो हाथ।।
भारत का हिस्सा सदा,
नहीं अलग कश्मीर।
सबक तुझे सिखलायेंगे,
भारत माँ के वीर ।।
मात्र नाम का पाक है,
काम सभी नापाक।
टिका रहे ईमान पर,
क्या कटती है नाक??
मर्यादा सीखी नहीं,
करता है बस जंग।
दुनिया में कायल हुआ,
*कायर कूर कुरंग।।
बच्चों जैसी हरकतें,
फेंको उन पर संग।
नई पौध विकृत हुई,
कर सेना को तंग।।
रक्षक को ही मारना,
कैसा क्रूर जुनून।
किन्तु सदा करते क्षमा,
चाहें तो दें भून।।
हित कर्ता दुश्मन लगें,
ट्रेनर खुदावतार।
ब्रेनवाश कर झोंक दें,
डाह-अनल के ज्वार।।
खाने को रोटी नहीं ,
अणुबम बाँधे पेट।।
चूहा बिल्ली से कहे,
दूँगा तुझको मेट।।
सात लोक ऊपर सजीं,
हूरें लगा बज़ार।
इंतज़ार हैं कर रहीं,
धरती बने मज़ार।।
हूरों के उस लोक में ,
जगहें लाख हज़ार।
ख़ाली कब से कर रहीं,
तेरा नित इंतजार।।
बुरा वक़्त जब आ गया,
बुद्धि न करती काम।
जगह न तेरी अब यहाँ,
जा ऊपर आराम।।
पुलवामा की आग में ,
जले न वीर महान।
कुटिल बुद्धि तेरी मरी,
जिसमें था शैतान।।
कुलवामा की आह से,
बचे न तू नापाक।
गीदड़ -भभकी से कभी ,
घटे न केहरि - धाक।।
💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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