शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

समय नहीं है! [व्यंग्य]

   हमारा देश कर्मठ लोगों  का देश है। यहाँ जितने भी काम हो रहे हैं, जब इस देश के निवासियों के पास समय नहीं है। यदि इनके पास समय होता, तो पता नहीं बुलंदियों के झंडे न जाने कितने ऊँचे फहराते। जब आप किसी व्यक्ति से पूँछे कि ये काम क्यों नहीं किया या करते हो? तो उसके पास एक गढ़ा गढ़ाया उत्तर यही होता है कि समय नहीं है। जब यहाँ के आदमी के पास समय नहीं है तब तो देश की जनसंख्या 130 करोड़ के हाई वे को क्रॉस कर चुकी है। यदि समय होता तो न जाने कितने हाई वे बना चुकी होती। पहले यहाँ के रोड दो लेन थे। फिर चार लेन हुए और अब छः-छः लेन के बन रहे हैं। जब तक ये छः लेन पूरे होंगे, तब तक आठ-आठ लेन की आवश्यकता की प्रसव पीड़ा शुरू होने लगेगी। समय ही नहीं है आदमी के पास, फिर बेचारा करे तो क्या करे।समय न होने पर तो ये हाल है, फिर क्या होगा अकल्पनीय है!
   यहाँ सारे काम तब होते हैं, जब आदमी के पास समय नहीं होता। समय से काम करने के अद्भुत परिणाम होते हैं। तो असमय काम करने के परिणाम भी चौंकाने वाले नहीं होंगे तो क्या  होंगे? भई! दाद देनी ही पड़ेगी देश वासियों की महान कर्मठता की। यहाँ आदमी को जो काम आवंटित किया जाता है,वह चाहे ठीक प्रकार से हो या न हो, लेकिन उसी समय में से समय निकालकर (अब मैं ये क्यों कहूँ कि समय की चोरी करके) ऐसे ऐसे कारनामे कर देता है, कि उन कारनामों का हाल देख सुनकर दाँतों तले अँगुली दबाने को बाध्य होना ही पड़ता है! अरे!भइए ये हमारी आवश्यक मजबूरी है कि हम ऐसे कामों की सराहना करें, उन्हें प्रोत्साहित करें। उनके स्वागत में स्वागत समारोह करें, उनके गले में माला, कंधों पर शॉल, और उनके करकमलों में पुष्पगुच्छ भी सुशोभित करें।यहाँ ऐसे ही कामों की सराहना की जाती है कि अपने आवंटित काम को कोने धरकर अन्य काम, कला में पारंगत होने कद झंडे गाड़ दे।औऱ सारा देश वाह! वाह!! कर उठे। जैसे बैंक मैनेजर साहब सुंदर हास्य कविता करने लगें। मास्टर साहब नेतागिरी करने लगें। नेताजी खेती करने लगें। किसान सचिवालय में जाकर नेताजी के चरण-चुम्बन करने और कराने के गुर बताने लगे। कानून के छात्र कचहरी में जाकर भोले भाले लोगों के कच हरण कराने के लिए वकीलों के दरबार में हाजिरी लगाने लगें। कहने का तातपर्य यह है कि अपने निजी को छोड़कर अन्य किसी विद्या? कला? करतूत ? में अपने हाथ मुँह रंग लेने का नाम  विशेषज्ञता है। फिर कैसे न कहा जाए कि समय नहीं है। समय तो तब हो जब हम कोई काम करें। अपना दायित्व समझ कर करें? जब कुर्सी पर कोट टाँगकर अध्यापक महोदय अपनी परचूनी की दुकान पर चले जायँ, या अपने खेत में गाजर खोदने, ट्रेक्टर चलाने, बाजार घूमने चले जायँ तो भला वे बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न नहीं होंगे तो कौन होगा? ये भी तो तब है जब, उनके पास समय नहीं है। धन्य मेरे देश! धन्य मेरे देश वासियों !! आप जानते ही हैं कि वैसे तो मैं कुछ औऱ भी लिखता पर क्या बताऊँ समय नहीं है।

💐शुभमस्तु !
✍🏼लेखक ©
😛डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...