पुलवामा के रक्त को,
भुला न पाए देश।
लेगा वह प्रतिशोध भी,
सुन ले कटु सन्देश।।
खूँ का बदला खून है,
गूँज रहा हर ओर।
ज्वाला भड़की देश में,
नहिं बचाव का ठौर।।
गीदड़ निकला माँद से,
ओढ़ शेर की खाल।
धोखे की टटिया लगा,
ठोक रहा है ताल।।
कब तक खैर मनायगी,
बकरे तेरी मात।
लड़ना है तो इधर आ,
छिपकर करता घात??
फन कुचलें उनका प्रथम,
आस्तीन के साँप।
पले सपोले डस रहे,
मनुज रहा है काँप।।
ग़म गुस्से की आग में,
जलने का अंजाम।
दुनिया देखेगी प्रकट,
शान्ति नहीं विश्राम।।
गीदड़ तेरी मौत का,
समय बहुत नज़दीक।
क़दम बढ़ाना सोचकर,
मिटे साँप की लीक।।
ग़म से नम माहौल में,
सोचो धरके धीर।
दोषारोपण आपसी,
अनुचित अति गंभीर।।
बोया बीज बबूल का,
नहीं फलेंगे आम।
काँटे ही चुभते रहे,
सुबह हो गई शाम।।
शांति सुह्रद सौहार्द्र का,
देना शुभ संदेश।
'शुभम' एक थे एक हैं,
एक हमारा देश।।
शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
☘ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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