बौराने तो आम थे,
बौराए हैं ख़ास।
फूल - फूल गुंजारते,
आया है मधुमास।।
बौराए बूढ़े युवा,
छाने लगा वसंत।
लाल अधर हँसने लगे,
आने वाला कन्त।।
बूढ़े पीपल में खिलीं,
कोंपल कोमल लाल।
महके बौर रसाल के,
बदली है लय-ताल।।
खिलीं पुष्प की क्यारियाँ,
तितली झूमे पास।
मधुमक्खी मकरंद पी,
मधु में भरे सुवास।।
पीउ -पीउ की रट लगा ,
पिक के मीठे बोल।
पिय की याद सता रही,
विरहिन में विष घोल।।
सरसों फूली खेत में ,
छाने लगी बहार।
प्रियतम से करने लगी,
प्रिया प्रमन मनुहार।।
गेंदा फूले बाग में,
महके लाल गुलाब।
आपस में फुसफुस करें,
बदल-बदल उर भाव।।
पतझर होता पेड़ से,
झरते पीले पात।
झोंका आया पवन का,
स्वच्छ धरा स्नात।।
फाल्गुन हिन्दू वर्ष का,
अंतिम मधुमय मास।
अंत भला तो सब भला,
नहीं मान उपहास।।
अंत आदि के युगल में,
शुभागमन ऋतुराज।
जड़ - चेतन में प्राण नव,
भरा हुआ है आज।।
कामदेव के घर हुआ ,
पुत्रजन्म यह जान।
झूमे उपवन -वन सभी,
है ऋतुराज महान।।
नवपल्लव का पालना,
वसन बनाते फूल।
पवन झुलाता निज करों,
पिक संगीत न भूल।।
लोरी तितली भ्रमर की,
प्रातः पंछी - राग।
कलरव सरिता का मधुर,
कहता अब उठ जाग।।
लाल कोंपलें हो रहीं,
हरी - हरी हरिताभ।
सघन लताएँ विटप भी,
सद सुगंध शुभ आभ।।
नर - नारी के उर उठी,
अनचीन्ही मधु पीर।
आकर्षण की भावना ,
धरो 'शुभम' उर - धीर।।
होली का रँग हाथ ले,
चंदन चारु अबीर।
ढप ढप ढप ढफ को बजा,
गाओ फाग - कबीर।।
वैर - भाव - विद्वेष सब,
जला होलिका - आँच।
गले मिलें त्यागें गिले,
बात सत्य शुचि साँच।।
ढफ ढोलक की धमक से,
उठे हूल उर -चंग।
थिरकें तन -मन पाँव भी,
नृत्य देख जन दंग।।
कर झींगा खटताल से,
बजा रहा मंजीर।
भींगे तन -मन रंग से,
भंग भेद - जंजीर।।
नाच -गान की लहर में,
रुके न हृदय - तरंग।
मनमानी होली मचा,
गाते फ़ाग हुरंग।।
शिशिर गया बदला समा,
विदा हुमक - हेमंत।
मात शारदा को नमन-
करता "शुभम" वसंत।।
💐 शुभमस्तु!
✍🏼 रचयिता©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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