मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

होलिकावली [छन्द:दोहा]

ये पछुआ  बहने  लगी,
पाँच  साल  के   बाद।
गरमाहट   भरने  लगी,
जन गण मन की याद।।

होली  के रंग  चटख हैं,
या     धूसर     बदरंग।
जिनको भाता पंक है,
उन्हें   न     भावे  रंग।।

राजनीति   के खेल में,
धुआँ   उड़े    या धूल।
खेल-भावना   ही  रहे,
मत अपनों को भूल।।

पिचकारी  की धार की,
कितनी   लम्बी    मार।
पाँच वर्ष की प्रगति का,
लेखा   रखो    सँभार।।

कोई     रंग   लगा   रहा,
कोई    मले       गुलाल।
कोई    कीचड़  में  सना,
आगे   कौन      हवाल।।

कोई   माया   लिप्त  है,
कोई      मीलों        दूर।
माया  के  भवजाल से,
जो    बच   पाए   शूर।।

मनभावन फ़ागुन सजा,
फूले     फूल       हज़ार।
बूढ़े   पीपल   आम  भी,
हरिआए    शत   बार।।

आम - आम  बौरा  उठा,
आ   जो    गया    वसंत।
लचकमचक लिपटी लता
समझा    अपना    कंत।।

कोयल   गाती डाल पर,
सुने  न     कोई     गीत।
नेताजी   की   कार   में ,
सुनें    फ़िल्म    संगीत।।

चन्दन  और  अबीर  के ,
बीत   गए    दिन    रात।
कीचड़ -होली में मनुज ,
करे   न   रंग-बरसात ।।

पाँच  वर्ष    के बैर सब ,
करें      होलिका- दाह।
सद्भावी   चंदन    लगा,
कहे 'शुभम' वा -वाह!!

💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता ©
 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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