शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

बोलते रहना ज़रूरी है! [व्यंग्य]

   राजकीय सेवा से निवृत्त अधिकारी या कर्मचारी को प्रतिमाह पेंशन प्राप्त करने के लिए वर्ष में एक बार नवम्बर माह में एक प्रमाणपत्र कोषागार में प्रस्तुत करना होता है, जो जीवन प्रमाण पत्र कहलाता है। इससे सिद्ध होता है कि आप आज की तारीख में जीवित हो। लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है कि इस वर्ष तो आप जीवित हैं, लेकिन क्या पिछले वर्ष भी आप जीवित थे या नहीं, इसका उनके अभिलेखों में उल्लेख नहीं मिल रहा है। क्योंकि आपका पिछले वर्ष का जीवन प्रमाणपत्र ही नहीं मिल रहा है । इसलिए क्यों न पिछली मिली पेंशन की आपसे रिकवरी करा ली जाए?
   ये तो हुई राजकीय सेवा की बात। राज से ही जुड़ी हुई एक नीति की बात भी लगे हाथों कर ही ली जाए।उसी राज की नीति से जुड़े हुए कुछ बन्दों की बात है। इनका बराबर कुछ न कुछ बोलते रहना ज़रूरी है। क्योंकि अगर ये नहीं बोलेंगे तो हो सकता है कहीं देशवासी उन्हें दिवंगत न समझ बैठें। और इस राज की नीति में तो कोई दिवंगत तो क्या रिटायर भी नहीं होना चाहता ! पेंशन तो विधायक, सांसद या मंत्री बनते ही खरी सोने की बन जाती है। काश ! ईश्वर के यहाँ कोई अपवाद होता कि जो राजनेता सो पा जाएगा अमरता। पर अभी तक ऐसा हो नहीं पाया। राजनेता न मरना चाहता है न पद निवृत्त ही होना चाहता है। बस उसे कुछ न कुछ बोलकर यह अवश्य प्रदर्शित करते रहना चाहता है कि अभी वह मर नहीं गया है। इसलिए वह अपने मुख कमल से ऐसे बयान बिना पूछे ,बिना माँगे, बिना प्रसंग के, सदुपदेशक की तरह देता ही रहता है। और कुछ नहीं तो किसी के कुर्ते को ही खींचने में अपनी राज नेताई की बांग लगा डालता है।
   अखबारों , टीवी चैनलों और डिजिटल मीडिया में सुर्खियों में रहना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। ये सिद्ध करता है कि वह अभी भी है। उसका निरन्तर सकारात्मक या नकारात्मक बोलना उसकी जिजीविषा का मजबूत प्रमाण है। वह राजनेता ही क्या जो हाई लाइट न रहे। कभी कभी तो राजनेताओं के बयानों को पढ़ देखकर हँसी आती है। कभी उनकी बुद्धि पर तरस खाने को जी कुछ -कुछ करने लगता है। पर इससे उनकी सेहत पर क्या फ़र्क पड़ता है। क्योंकि वह बहरा भी होता है। केवल अपनी सुनाना, दूसरे की न सुनना :ये राजनेताओं की विशेष प्रवृति है। यदि ऐसा न हो तो वह बेचारा किस किस की सुने, कब सुने, औऱ क्या उत्तर दे? देश की समस्याएं तो कभी भी खत्म होने वाली हैं नहीं! पर वह ये नहीं जानता कि समस्याएं हैं , इसीलिए वह है। समस्याएं नहीं तो राजनेता की ज़रूरत ही क्या? इसलिए कुछ राजनेता समस्याएं पैदा करने में ही संलग्न रहते हैं।क्योंकि समस्या नहीं ,तो नेता नहीं। इसलिए जहां जितनी समस्या वहाँ उतने अधिक नेता।जितने अधिक नेता, उतने अधिक बोल। जितने अधिक बोल उतने अधिक झोल, मोलतोल। पर नेताजी का बोलते रहना ज़रूरी है। क्या बोलेंगे या क्या बोलते हैं , आज का, कल का, परसों का, वर्षों पहले का कोई भी अख़बार उठा लो, मिल जाएगा कि क्या क्या बोलते हैं। पर इतना तो मानना ही पड़ेगा नेताजी का लगातार बोलना उनकी जिंदादिली, उनकी जिंदगी की निशानी है। यही तो उनका जीवन प्रमाण पत्र है।

शुभमस्तु !
✍ लेखक ©
 डॉ. भगवत स्वरूप'शुभम'

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