मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019

कुलवामाएँ बिलख रही हैं [राष्ट्रभक्ति गीत]

कुलवामाएँ   बिलख  रही हैं
पुलवामा    में     जा    सोए।
सुधि ले   लेते  अपनी माँ की
आँसू      जार - जार    रोए।।

लाज रखी माँ के आँचल की
देह    देशहित   होम  किया।
अमर शहीदों  की कतार  में
नाम लिखाया  सोम किया।।
पता नहीं था इतना   हमको
नहीं  लौट    घर    आओगे।
तुम्हें  देख लेती   मैं जी भर
अब   शहीद   कहलाओगे।।
कौन घड़ी   थी    मेरे बच्चे
जब तुम जननि कोख़ बोए।
कुलवामाएँ बिलख ....

आँसू   रुकते    नहीं नयन से
तेरी       दुल्हन      रोती   है।
दिवस रात भर पड़ी अधमरी
धरा   अश्रु    से   धोती   है।।
बच्चे  लिपट-लिपट कर पूछें
पापाजी      कब      आएँगे।
तोप  टैंक   बंदूक   खिलौने
देकर     हमें     खिलायेंगे।।
गुमसुम पिता   तुम्हारे  बेटे!
चिंतामग्न    कहाँ      खोए?
कुलवामाएँ  बिलख ....

बहन    तुम्हारी   पूछ  रही  है
किसको    राखी       बाँधूँगी!
भैयादूज   करूँगी    किसकी
मनोकामना           साधूगी!! 
अब मैं   किसको तंग करूँगी
माँगूँगी        उपहारों       को।
अँगुली पकड़ चलूँगी किसकी
देखूँगी   क्या    तारों    को??
आँसू  के  झरने    बहते   हैं
मुन्नी    के    नयनों -  कोए।।
कुलवामाएँ बिलख....

गली -  मोहल्ले के सब वासी
कर - कर   याद   दुःखी होते।
हँसमुख मिलनसारिता की सुधि
करते   सजल   नयन   रोते।।
भाभी बिलख बिलख कर बोली
किससे    होली       खेलेंगे?
देवर जी  कह   गए   हमारे
गुझिया   पापड़   भी लेंगे।।
महीना भर ही शेष रहा था
सब   ही   बाट   रहे  जोए।
कुलवामाएँ बिलख ....

हमें    गर्व है    तुम  पर बेटे
जन्मभूमि  का  हित साधा।
राष्ट्र -त्राण में प्राण होम कर
दुःख कर   दिया  है आधा।।
वीरप्रसू     कहलाऊँगी   मैं
धन्य   कोख़    मेरी  तुमसे।
बिना  तुम्हारे   जीवन कैसा
जिया  नहीं    जाता  हमसे।।
दायित्वों के   वृहत  कर्म से
शुभम भारती-दृग धोए।
कुलवामाएँ बिलख ....    ।।

शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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