रविवार, 17 फ़रवरी 2019

सेना बुरके में छिपी क्यों? [गीतिका]

◆1◆
गीदड़ों   की  मौत का ये,
अब   बुलावा   आ गया !
ग़म का साया देशभर में,
ये  अचानक  छा   गया!!
जागते शेरों  को जिसने,
वार कर ललकार डाला।
आख़िरी ये वक़्त उसका,
मौत का बनने निवाला।।

◆2◆
मुँह  कुचलना है सपोलो,
भाग  कर  जाते    कहाँ?
दूध  पीकर जहर उगलो,
चैन     से   रहते    यहाँ।।
जन्म   लेते   खाते-पीते,
देश  भारत  की    जमीं!
मर  चुकी  है  आँख  की,
थोड़ी-बहुत बाक़ी नमीं।

◆3◆
धिक्कार पाकिस्तान तुझको,
धिक्कार  है  धिक्कार है।
बाप को आँखें दिखाता ,
जन्मना मक्कार  है।।
अब हमें बरदास्त करना,
एकदम   संभव     नहीं।
नाम   मिट  जाए धरा से,
अबनिकटवह वक़्त ही।।

◆4◆
एक  पुलवामा  के बदले,
दस  की  ताकत   है हमें।
सामने आकर दिखा दम,
कायराना         हरकतें।।
आ गए अपनी तरह हम,
बन धुँआँ    उड़   जएगा।
पहचानने  वाले न होंगे,
सिर न धड़ रह पाएगा।।

◆5◆
जोश जज्बाऔ' जुनूं का
हौसला  'गर      देखना।
ओट टट्टी की न छिप तू,
(दो)दो हाथकरके देखना
सेना बुरके में छिपी क्यों,
आतंकियों  को  भेजता।
मर रहा जो भूख से नित,
दण्ड    चूहा      पेलता।।

💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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