बुधवार, 16 अक्तूबर 2019

दिए जलाएँ नेह के [ कुण्डलिया ]

              


दिए   जलाएँ     नेह    के ,
बिन   बाती     बिन   तेल।
दीवाली    हर     रोज़   है ,
जब    हो   मन  में    मेल।
जब    हो   मन  में    मेल,
नहीं  हो  मैल   ज़रा - सा।
खिलते      मोहक    सुमन,
दिखे  सब  हरा   हरा - सा।।
स्वस्थ        सुखी      नीरोग,
टलें    सब   अला  - बलाएँ।
'शुभम' -  हृदय    के    दीप,
चलो    हम    दिए  जलाएँ।।1।

दीवाली      की     रात    है ,
खुशियों      का     त्यौहार।
मन    से  कटुता     दूर  हो ,
कपट      रहित    व्यौहार।।
कपट     रहित      व्यौहार,
द्यूत    मदिरा    को    त्यागें।
सबका       सोचें       लाभ,
दीनता      तृष्णा     भागें।।
ऐसे          बोलें        बोल ,
नहीं    दें    चुभती    गाली।
'शुभम'    करे   सत    काम,
नेक  हो तभी   दिवाली।।2।

देने   को     कहते     सभी ,
दिया      मनोहर       नाम।
जैसा    उसका    नाम    है ,
वैसा      उसका       काम।।
वैसा      उसका        काम ,
इसी    माटी     से   बनता ।
दीपक ,    बाती         तेल-
जलाकर   सपने     बुनता।।
अँधियारा       हो        दूर ,
किया   कुछ कभी  न मैंने।
'शुभम '  एक     ही   काम,
जानता   केवल     देने।।3।

लंका  औ '    लंकेश     को ,
जीत    आ     गए       राम।
पुरी     अयोध्या    में    हुई ,
खुशियाँ   भव्य     ललाम।।
खुशियाँ    भव्य     ललाम,
दिए    घृत    पूर    जलाए।
दिन -  सी    खिलती   रात,
रात   मावस    की   पाए।।
गाँव  -  नगर      में     ख़ूब,
बज रहे   घन -  घन  डंका।
रघुकुल -  भूषण       राम ,
जीत कर आए  लंका ।।4।

बालें    सब    पकने   लगीं,
घर   में      आए       धान।
स्वागत  करने    के   लिए ,
जागा      कृषि  -  संधान।।
जागा     कृषि  -    संधान ,
लक्ष्मी  -   पूजन     करता।
श्रीगणेश       के      साथ,
दिवाली    दीप  निखरता।।
मन      में   'शुभम'   तरंग ,
बिना   पूजन  क्यों  खालें?
दीवाली      पर         पूज,
बनी    उपयोगी  बालें।।5।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌿 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

www.hinddhanush.blogspot.in

15.10.2019 ◆8.15  अपराह्न।

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