सबकीअपनी अलग दिवाली।
ख़ुशी ग़मों के साथ निकाली।
चूड़ी की खन-खन से रूठे,
नारि-चुहल से पनघट खाली।
दिए जलाने की ही ख़ातिर,
मावस की यह रात निराली।
दूर भगाने को अँधियारा,
इंसां ने सौगात सँभाली।
अपने घर के सब हैं राजा,
दीप जलाए ख़ुशी मना ली।
उत्सव -प्रेमी हैं हम मानव,
हर्षित घड़ियाँ सहज बढ़ा ली।
'शुभम' जहाँ ने किया अँधेरा,
फिर भी हमने मंज़िल पा ली।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🧡 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
www.hinddhanush.blogspot.in
25.10.2019 ●7.00 पूर्वाह्न।
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