गो हैं मानव - इन्द्रियाँ,
वर्द्धन का शुभ पर्व।
गोवर्धन कहते इसे,
ब्रजवासी सह गर्व।।1।
रूप , गंध, रस , परस की ,
ज्ञान - इन्द्रियाँ चार।
श्रोत्र शब्द का केंद्र है ,
पंच - ज्ञान उपचार।।2।
पाँच कर्म की इन्द्रियाँ,
मुख , कर , पद , मलद्वार।
उपस्थ इन्द्रिय पाँचवीं,
मानव को उपहार।।3।
सदुपयोग से इन्द्रियाँ ,
करतीं विकसित रूप।
दुरुपयोग जो कर रहा,
गिरता है भव - कूप।।4।
देह सु - रथ का सारथी,
मन सुंदर देहीश।
दस घोड़े रथ खींचते,
झुका - झुका निज शीश।।5।
मन से बाहर कौन है,
दस अश्वों का जोड़।
जिधर कहे मन वे चलें,
ग़लत - सही दें मोड़।।6।
गो -धन तन के बैंक हैं,
करते दानादान।
घटता बढ़ता मनुज का ,
मान और सम्मान ।।7।
तन के बाहर गाय ही,
है गोधन का रूप।
पोषण करती दूध से,
जिसका अमिय स्वरूप।।8।
गौ माता का रूप दे ,
करते पूजन रोज़।
कोटि देव गो - तन बसें,
ऋषि मुनियों की खोज।।9।
गो - धन की रक्षा करें ,
भारत का संस्कार।
हिंदी हिन्द महान हैं,
खो दें क्यों अधिकार ।।10।
दस दोहे दस इन्द्रियाँ ,
गो - धन का शुभ रूप।
'शुभम ' ईश है मन प्रबल,
धवल चंद्रिका रूप।।11
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🏆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
www.hinddhanush.blogspot.in
26.10.2019 ◆11.25 पूर्वाह्न
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