शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

चरित्र -गान [ अतुकान्तिका ]

        


आमजन की दृष्टि में
भक्तों की भक्ति में 
जो रहा  महाज्ञानी,
महान उपदेशक ,
धार्मिक संत ,
हो गया 
उसका भी 
दारुण अंत।

जनता ने सुनी
बस जिह्वा की वाणी,
उपदेशों की झनकार,
न कहीं इनकार,
सर्वथा 
स्वीकार ही स्वीकार,
देह का गेरुआ वसन,
तिलक, रुद्राक्ष , चंदन,
 नहीं देख पाए
गोपित अदृश्य नयन,
लेता रहा
मूँद कर अपनी दो आँखें,
उनका अंध पक्ष,
नहीं देखा 
कितना है  निर्मल ,
हृदय स्वच्छ!

चरित्र का दामन 
था कितना मैला,
बना हुआ  था जो
युवतियों, 
सुंदरियों में छैला,
करता  रहा  मनमानी,
जब तक चाहा,
ख़ूब रंग गुलाल का
 कमाल बरसाया,
पिचकारी का फ़व्वारा
रंग लाया,
होली खेला ,
गोपियों सँग ज्यों 
कन्हैया बरसाने में खेला,
खेला गया आश्रमों में
रासलीला का झमेला ।

अज्ञान का परदा हटा,
चरित्र के सूरज से
तम भरा बादल फटा,
पकड़ ही ली गई 
उसकी उलझी हुई जटा,
सत्य की तराजू पर 
तोला गया,
रेशमी परदे का मोल
आँका गया,
और औऱ और
भीतर झाँका गया,
तब कारागार के
सीखचों में
टाँगा गया।

सर्वोपरि है चरित्र
न ज्ञानी न विज्ञानी
न धर्म का ढोंग,
सभी हैं रोग,
सब उसके पीछे हैं,
चरित्र और चरित्रवान से
सभी  नीचे हैं।

चरित्र के बिना
न कोई नेता ,
न नायक न संत,
सभी मुखौटे हैं,
मुखौटा हटा
चरित्र का कलुष-
दिख ही गया,
तथापि अंधभक्त
आज भी 
बैठे हैं आश में,
गिन रहे हैं 
वे दिन 
कारा की पाश में,
खुल जो गया है 
काला चिट्ठा,
काजू बादाम की जगह
मिलता भी नहीं मट्ठा।

जो चरणों में नहीं
वह आचरण में है,
आचरण ही निहारो
चरण - नमन से पूर्व,
न करो व्यग्रता 
उतावली न अंध विश्वास,
न देखो 
वाणी का प्रकाश,
छद्म अट्टहास।

शनैः - शनैः 
चरित्र ही निहारो,
ईमान मत हारो,
अपने विश्वास को
उन पर तभी वारो,
जादूगरों के चमत्कारों पर
आत्मा को मत मारो,
कलाबाजियों से
मत डरो,
वाणी की रसधार में
मत गिरो ,
अंतरात्मा की 
पुकार ही गहो,
जीवन में चाहे
कितने कष्ट सहो।

चरित्र से ही
व्यक्ति है ,
समाज है ,
सुनहरा  कल है 
और आज है,
शिक्षा ,संस्कृति है,
देश है , देशभक्ति है,
महाज्ञानी से
चरित्र महान है,
महापंडित से
चरित्र बलवान है,
रावणों से सदा
एक राम की 
ऊँची  शान है।

💐  शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
🌻  डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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