जिंदगी फ़ूल है मग़र शूल भी है।
गुलाब की पंखुरी भी बबूल भी है।।
दुधारे तेग पर चलना सँभल- सँभल,
क़दमों को आगे बढ़ाने का उसूल भी है।
कोई दरिया ज्यों समंदर से जा मिले,
ज़िंदगी इनकार भी कुबूल भी है।
सबके अलग रास्ते मंज़िल भी जुदा,
सीधे सपाट मैदाँ गड्ढा कूल भी है।
टुकड़े सभी जोड़ ले तरतीब से 'शुभम',
ये गीत है मनोहर थिर मूल भी है।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🔆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
www.hinddhanush.blogspot.in
25.10.2019 ◆8.00अपराह्न।
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