शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

ग़ज़ल



जिंदगी  फ़ूल  है मग़र शूल भी है।
गुलाब  की  पंखुरी  भी बबूल भी है।।

दुधारे तेग पर चलना  सँभल- सँभल,
क़दमों को आगे बढ़ाने का उसूल भी है।

कोई  दरिया ज्यों समंदर से जा मिले,
ज़िंदगी  इनकार भी  कुबूल भी है।

सबके अलग रास्ते मंज़िल भी जुदा,
सीधे सपाट  मैदाँ  गड्ढा  कूल भी है।

टुकड़े सभी जोड़ ले तरतीब से 'शुभम',
ये गीत  है मनोहर थिर मूल भी है।

💐 शुभमस्तु  !
✍रचयिता ©
🔆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

www.hinddhanush.blogspot.in

25.10.2019 ◆8.00अपराह्न।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...