दिया नहीं तो पर्व क्या ,
मना रहे सब लोग ।
दीपावलि कहते जिसे,
धन का ही सुख -भोग।।1।
दिया जले मुखड़े खिले,
तम का हुआ विनाश।
महलों की महिमा बड़ी ,
कुटिया को भी आश।।2।
दीपक से दीपक जले,
बढ़ता पुण्य - प्रकाश।
मानव से मानव जले,
मिट जाती हर आश।।3।
जलता दीपक देखकर,
बँधी बुझे को आश।
दीपक से ही सीख ले,
खाता है क्या घास??4।
छज्जे छत छप्पर सभी ,
हुए प्रकाशित आज।
घर - घर में दीपक जले,
दीवाली का साज।।5।
खीलों - सी मुस्कान है ,
भरी बताशे आश।
बाती की फैले प्रभा ,
घर - घर भरे उजास।।6।
झिलमिल झालर झूमती,
रंग - बिरंगी ख़ूब।
बेलें भी हँसने लगीं,
मुस्काती है दूब।।7।
बतियाती है दीप - लौ,
गुपचुप करतीं बात।
एक वर्ष में एक ही ,
आती है क्यों रात!!8।
दीवाली की रात में,
भूले सब संदेश।
'आतिशबाजी मत जला'-
का देते उपदेश।।9।
लगा पलीता सीख में ,
फूँक रहे बारूद।
ज़हर घोलते वायु में ,
करते ऊधम कूद।।10।
द्यूत सुरा सट्टा तजें ,
दीवाली शुभ पर्व।
उर से उर को दें मिला ,
'शुभम ' ज्योति का गर्व।।11।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम '
www.hinddhanush.blogspot.in
20अक्टूबर 2019◆10.30 पूर्वाह्न
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