- दोहा -
'सदा सुहागिन ही रहूँ'-
की लेकर उर - साध।
सधवा करती साधना,
कार्तिक के पूर्वार्द्ध।।
- चौपाई -
करक चतुर्थी कार्तिक आई।
करवा चौथ ख्याति घर लाई।।
स्वस्थ समृद्ध रहे पति अपना।
इसी साध में मुझको तपना।।
आयु दीर्घ हो मेरे पति की।
शांति सुखदता जीवन रति की।।
पति ही पत है और आन भी।
मेरे घर का मृदुल मान भी।।
करवा का निर्जल व्रत करती।
भूख - प्यास की चिंता टरती।।
- दोहा -
दर्शन करके चाँद के,
देती अर्घ्य सु - नारि।
पति - मुख ही दर्शन प्रथम,
फिर पीती है वारि।।
- चौपाई -
श्री गणेश की कृपा - जुन्हाई।
देती जीवन सदा सहाई।।
कठिन साधना नित फलदाई।
विपदा क्षण में दूर भगाई।।
पतिव्रता की विमल साधना।
तपी - नारि का कौन सामना।।
अमर हो गई करवा देवी।
वह थी सच्ची पति पद सेवी।।
एकनिष्ठ पति - प्रेम सिखाती।
करवा पर सधवा बलि जाती।
- दोहा -
भारत की सन्नारियाँ,
अप्रतिम चरित महान।
तमस मिटातीं गेह के,
कर पूरित धन -धान।।
त्याग तपस्या प्रणय का ,
करवा थी भांडार।
मृत पति को जीवित किया,
तोड़ असत की डार।।
मातृशक्ति का हम करें, .
आजीवन सम्मान।
मातृशक्ति के मान से,
हों प्रसन्न भगवान।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌿 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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